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भगवती सूत्र-शं. ९ उ. :३ जमाली चरित्र
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जाकर स्नान-सम्बन्धी सभी क्रियापूर्वक स्नान किया यावत् औपपातिक सूत्र में वणित परिषद् का सारा वर्णन जानना चाहिये । यावत चन्दन से लिप्त शरीर वाला वह जमाली सभी अलंकारों से विभूषित होकर स्नान घर से बाहर निकला और उपस्थानशाला में आकर अश्वरथ पर चढ़ा । सिर पर कोरण्ट पुष्प की माला युक्त छत्र धारण किया हुआ और महायोद्धाओं के समूह से परिवृत वह जमालीकुमार क्षत्रियकुंड ग्राम नामक नगर के मध्य में होकर बाहर निकला और बहुशालक उद्यान में आया। घोडों को रोककर रथ खड़ा किया और नीचे उतरा । फिर पुष्प, ताम्बूल, आयुध (शस्त्र) आदि तथा उपानह (जूता) छोड़ दिया और एक पट वाले वस्त्र का उत्तरासंग किया। इसके बाद परम पवित्र बनकर और मस्तक पर दोनों हाथ जोड़कर श्रमण भगवान महावीर स्वामी के निकट पहुँचा । श्रमण भगवान महावीर स्वामी को तीन बार प्रदक्षिणा की यावत् त्रिविध पर्युपासना से उपासना करने लगा। श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने जमाली क्षत्रियकुमार को तथा उस बडी ऋषिगण आदि की महापरिषद् को धर्मोपदेश दिया। धर्मोपदेश श्रवण कर वह परिषद् वापिस चली गई।
__ १०-तएणं से जमालिखत्तियकुमारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा, णिसम्म हट्ट-तुट जाव हियए, उट्ठाए उठेइ, उट्टाए उद्वेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो जाव णमंसित्ता एवं वयासी-गदहामि णं भंते ! णिग्गंथं पावयणं, पत्तियामि णं भंते ! णिग्गंथं पावयणं, रोएमि णं भंते ! णिग्गंथं पावयणं, अब्भुट्टेमि णं भंते ! णिग्गंथं पावयणं, एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते ! अवितहमेयं भंते ! असंदिद्धमेयं भंते ! जाव से जहेयं तुम्भे वयह, जं णवरं देवाणुप्पिया ! अम्मापियरो आपुच्छामि, तएणं अहं देवा
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