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भगवती सूत्र-श. ९ उ. ३३ जमाली चरित्र
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उत्सव है, वृक्ष का उत्सव है, चैत्य का उत्सव है, या स्तूप का उत्सव है, कि जिससे ये सब उग्रकुल, भोगकुल, राजन्यकुल, इक्ष्वाकुकुल, ज्ञातकुल और कुरुवंश, इन सब के क्षत्रिय, क्षत्रियपुत्र, भट और भटपुत्र इत्यादि औपपातिक सूत्र में कहे अनुसार यावत् सार्थवाह प्रमुख, स्नानादि कर के यावत् बाहर निकलते हैं-इस प्रकार विचार करके जमाली क्षत्रियकुमार ने कञ्चुकी (सेवक) को बुलाया. और इस प्रकार कहा-'हे देवानुप्रिय ! क्या आज क्षत्रियकुंड ग्राम नामक नगर के बाहर इन्द्र आदि का उत्सव है, जिससे ये सब लोग बाहर जा रहे हैं ?" जमाली क्षत्रियकुमार के इस प्रश्न को सुनकर वह कञ्चुकी पुरुष हर्षित एवं संतुष्ट हुआ । श्रमण भगवान महावीर स्वामी के आगमन का निश्चकरके उसने हाथ जोड़कर जमाली क्षत्रियकुमार को जय-विजय शब्दों द्वारा बधाया। तदनन्तर उसने इस प्रकार कहा-“हे देवानुप्रिय ! आज क्षत्रियकुंड प्राम नामक नगर के बाहर इन्द्र आदि का उत्सव नहीं है, किन्तु सर्वज्ञ, सर्वदर्शी श्रमण भगवान महावीर स्वामी नगर के बाहर बहुशाल नामक उद्यान में पधारे हैं और ययायोग्य अवग्रह ग्रहण करके यावत् विचरते हैं। इसलिये ये उग्रकुल भोगकुलादि के क्षत्रिय आदि वन्दन के लिये जा रहे हैं ।" कंचुकी पुरुष से यह बात सुनेकर एवं हृदय में धारण करके जमाली क्षत्रियकुमार हर्षित एवं संतुष्ट हुआ और कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर इस प्रकार कहा-'हे देवानुप्रियों ! तुम शीघ्र चार घण्टा वाले अश्वरथ को जोड़कर यहां उपस्थित करो और मेरी आज्ञा को पालन कर निवेदन करो। जमाली क्षत्रियकुमार की इस आज्ञा को सुनकर तदनुसार कार्य करके उन्हें निवेदन किया।
९ तएणं से जमालिखत्तियकुमारे जेणेव मज्जणघरे तेणेब उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता हाए कयवलिकम्मे जाव उववाइए परिसा वण्णओ तहा भाणियव्बं, जाव चंदणोकिण्णगायसरीरे सव्वा
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