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________________ १७०८ भगवती-सूत्र श. ९ उ. ३३ जमाली चरित्र समणस्स भगवओ महावीरस्स आगमणगहियविणिच्छए करयल० जमालिं खत्तियकुमारं जएणं विजएणं वद्धावेइ, बद्धावित्ता एवं वयासी-णो खलु देवाणुप्पिया ! अज्ज खत्तियकुंडग्गामे णयरे इंदमहे इ वा, जाव णिग्गच्छंति; एवं खलु देवाणुप्पिया ! अज्ज समणे भगवं महावीरे जाव सव्वण्णू सव्वदरिसी माहणकुंडग्गामरस णयरस्स बहिया बहुसालए चेइए अहापडिरूवं उग्गहं जाव विहरई । तएणं एए बहवे उग्गा भोगा, जाव अप्पेगइया वंदणवत्तियं जाव णिग्गच्छति । तएणं से जमाली खत्तियकुमारे कंचुइपुरिसस्स अंतियं एयं अटुं सोचा, णिसम्म हट्ठ तुट्टे० कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, को० सद्दावेत्ता एवं वयासी--खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! चाउग्घंटे आसरहं जुत्तामेव उवट्ठवेह, उवट्ठवेत्ता मम एयमाणत्तियं पञ्चप्पिणह । तएणं ते कोडुंबियपुरिसा जमालिणा खत्तियकुमारेण एवं वुत्ता समाणा जाव पञ्चप्पिणंति । कठिन शब्दार्थ-इंदमहे-इन्द्र महोत्सव, खंदमहे-स्कन्ध महोत्सव, मुगुंदमहे-मुकुन्द महोत्सव, मडा-भट, सत्यवाहप्पभिइयो-सार्थवाह प्रभृति (इत्यादि), आगमणगहियविणिच्छए-आगमन का निश्चय करके, आसरहं-अश्वरथ । ___ भावार्थ-बहुत से मनुष्यों के शब्द और कोलाहल सुनकर और अवधारण कर क्षत्रियकुमार जमाली के मन में इस प्रकार का विचार उत्पन्न हुआ कि"क्या आज क्षत्रियकुंड ग्राम नगर में इन्द्र का उत्सव है, स्कन्द का उत्सव है, वासुदेव का उत्सव है, नाग का उत्सव है, यक्ष का उत्सव है, भूत का उत्सव है, कूप-उत्सव है, तालाव-उत्सव है, नदी का उत्सव है, द्रह का उत्सव है, पर्वत का Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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