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भगवती सूत्र-श. ९ उ. ३३ ऋपभदत्त और देवानन्दा
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यावत् नमस्कार किया और इस प्रकार निवेदन किया कि 'हे भगवन् ! आपका कथन यथार्थ है,' 'हे भगवन् ! आपका कथन यथार्थ है।' इत्यादि दूसरे शतक के पहले उद्देशक में स्कन्दक तापस के प्रकरण में कहे अनुसार यावत् 'जो आप कहते हैं वह उसी प्रकार है ।' इस प्रकार कह कर ऋषभदत ब्राह्मण ईशानकोण की ओर गया और स्वयमेव आभरण, माला और अलंकारों को उतार दिया । फिर स्वयमेव पञ्चमुष्टि लोच किया और श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास आया। भगवान् को तीन बार प्रदक्षिणा की यावत् नमस्कार करके इस प्रकार कहा-“हे भगवन् ! जरा और मरण से यह लोक चारों ओर प्रज्वलित है, हे भगवन् ! यह लोक चारों ओर अत्यन्त प्रज्वलित है।" इस प्रकार कहकर स्कन्दक तापस की तरह प्रव्रज्या अंगीकार की, यावत् सामायिक आदि ग्यारह अंगों का अध्ययन किया और बहुत से उपवास, बेला, तेला, चौला आदि विचित्र तप-कर्म से आत्मा को भावित करते हुए बहुत वर्षों तक श्रमण पर्याय का पालन किया और एक मास को संलेखना से आत्मा को संलिखित करके साठ भक्तों के अनशनों का छेदन किया और जिसके लिये नग्न-भाव (निग्रंथपनसंयम) स्वीकार किया था यावत् उस निर्वाण रूप अर्थ की आराधना करली यावत् वे सर्व दुःखों से मुक्त हुए।
____७-तएणं सा देवाणंदा माहणी समणस्स भगवओ महावीरस्स
अंतियं धम्मं सोचा णिसम्म हट्ठा तुट्ठा समणं भगवं महावीर तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं, जाव णमंसित्ता एवं वयासी-एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते ! एवं जहा उसभदत्तो तहेव जाव धम्मं आइक्खियं । तएणं समणे भगवं महावीरे देवाणंदं माहणिं सयमेव पब्वावेइ, सयमेव पव्वा वित्ता सयमेव अजदणाए अजाए सीसिणित्ताए दल
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