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________________ १७०२ - भगवती सूत्र-श. ९ उ. ३३ ऋषभदत्त और देवानन्दा समणं भगवं महावीरं तिखुत्तो जाव णमंसित्ता एवं वयासी-एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते ! जहा खंदओ जाव से जहेयं तुम्भे वदह ति कटु उत्तरपुरस्थिमं दिसिभागं अवक्कमइ, अवक्कमित्ता सयमेव आभरण-मल्ला-ऽलंकार ओमुयइ, सयमेव०ओमुइत्ता सयमेव पंचमुट्टियं लोयं करेइ, करित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिवखुत्तो आयाहिणं पयाहिणं, जाव णमंसित्ता एवं वयासी-आलित्ते णं भंते ! लोए, पलित्ते णं भंते ! लोए, आलित्तपलिते णं भंते ! लोए जराए मरणेण य, एवं एएणं कमेणं जहा खंदओ तहेव पव्वइओ, जाव सामाइयमाइयाइं.एक्कारस अंगाई अहिज्जइ, जाव बहूहिं चउत्थछट्ट-टुम-दसम-जाव विचित्तेहिं तवोकम्मेहि अप्पाणं भावमाणे बहूइं वासाइं सामण्णपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसेइ, झूसित्ता सटुिं भत्ताइं अणसणाए छेदेइ, छेदित्ता जस्सहाए कीरइ णग्गभावे जाव तमढें आराहेइ, आराहेत्ता जाव सब्वदुक्खप्पहीणे। . कठिन शब्दार्थ-एवमेयं-इसी प्रकार, तहमेयं-उसी प्रकार, अवक्कमइ-जाकर, लोयंलोच, आलिते-जल रहा है, पलिते-प्रज्वलित हो रहा है, जस्सट्टाए-जिसके लिए। भावार्थ-६-श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास धर्म श्रवण कर और हृदय में धारण कर के ऋषभदत ब्राह्मग बड़ा प्रसन्न हुआ, तुष्ट हुआ। उसने खडे होकर श्रमण भगवान महावीर स्वामी की तीन बार प्रदक्षिणा की Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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