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भगवती मूत्र-श. ५ ३. ३३ ऋषभदत्त और देवानन्दा
पुन्यपुत्तसिणेहरागेणं आगयपण्हया, जाव समूसवियरोमकूवा ममं अणिमिसाए दिट्टीए पेहमाणी पेहमाणी चिट्ठइ । तएणं समणे भगवं महावीरे उसभदत्तस्म माहणस्स देवाणंदाए माहणीए तीसे य महतिमहालियाए इसिपरिसाए जाव परिसा पडिगया ।
कठिन शब्दार्थ-अम्मगा-माता, भत्तए-आत्मज, पुश्वपुत्तसिणेहरागेणं-पूर्व के पुत्रस्नेहानुराग से, इसिपरिसाए-ऋषियों की परिषद को ।
___ भावार्थ-५ प्रश्न-इसके पश्चात् 'हे भगवन् !' ऐसा कहकर गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को वन्दना नमस्कार किया। वन्दना नमस्कार करके इस प्रकार पूछा-'हे भगवन् ! इस देवानन्दा ब्राह्मणी को किस प्रकार पाना चाढा (इसके स्तनों में से दूध कैसे आगया) यावत् उसको रोमाञ्च किस प्रकार हुआ ? और आप देवानुप्रिय की ओर अनिमेष दृष्टि से देखती हुई क्यों खडी है ?
५ उत्तर-'हे गौतम !'-ऐसा. कहकर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने गौतम स्वामी से इस प्रकार कहा-"हे गौतम ! यह देवानन्दा मेरी माता है, मैं देवानन्दा का आत्मज (पुत्र) हूँ। इसलिये देवानन्दा को पूर्व के पुत्र-स्नेहानुराग से पाना चढ़ा यावत् रोमाञ्च हुआ और यह मेरी ओर अनिमेष दृष्टि से देखती हुई खडी है।" ... इसके बाद श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने ऋषभदत ब्राह्मण, देवानन्दा ब्राह्मणी और उस बडी ऋषिपरिषद् आदि को धर्म-कथा कही, यावत् परिषद् वापिस चली गई।
. ६-तएणं से उसभदत्ते माहणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मं सोचा णिसम्म हट्ठ-तुट्टे उठाए उट्टेइ, उठाए उतॄत्ता
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