________________
१७००
भगवती सूत्र-श. ५ उ. ३३ ऋषभदत्त और देवानन्दा
गये) हर्ष से उसका शरीर प्रफुल्लित हो गया। उसकी कंचुकी विस्तीर्ण हो गई। मेघ की धारा से विकसित कदम्ब पुष्प के समान उसका सारा शरीर रोमाञ्चित हो गया। वह श्रमग भगवान् महावीर स्वामी की ओर अनिमेष दृष्टि से देखने लगी।
विवेचन-ऋषभदत्त ब्राह्मण और देवानन्दा ब्राह्मणी धार्मिक श्रेष्ठ रथ पर चढ़कर भगवान् के दर्शन करने के लिये गये । भगवान् को वन्दनार्थ जाते हुए उन्होंने पांच अभिगम किये । यया-(१) सचित्त द्रव्य, जैसे-पुष्प, ताम्बूल आदि का त्याग करना । (२) अचित्त द्रव्य,-वस्त्र आदि को मर्यादित करना (३) एक पटवाले दुपट्टे का उत्तरासंग करना । (४) मुनिराज के दृष्टिगोचर होते ही हाथ जोड़ना और (५) मन को एकाग्र करना। साधुसाध्वियों के पास जाते समय श्रावक-श्राविकाओं को पांच अभिगमों का पालन करना चाहिये। साधु साध्वियों के सन्मुख जाते समय पाले जाने वाले नियमों को 'अभिगम' कहते हैं । श्राविका के अभिगमों में थोड़ा सा अन्तर है । वह यह हैं-तीसरे अभिगम के स्थान पर 'विनय से शरीर को झुका देना'-कहना चाहिये।
भगवान को देखते ही देवानन्दा के नेत्र आनन्दाश्रओं में भर गये। मेघधारा से विकसित कदम्ब पुष्प के समान उसका सारा शरीर रोमाञ्चित हो उठा । उसकी कञ्चुकी तंग हो गई और स्तनों में दूध आ गया।
५ प्रश्न-भंते ! ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदह णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी-किं णं भंते ! एसा देवाणंदा माहणी आगयपण्हया, तं चेव जाव रोमकूवा देवाणुप्पियं अणिमिसाए दिट्ठीए पेहमाणी पेहमाणी चिट्ठइ ?
५ उत्तर-गोयमाइ ! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी-एवं खलु गोयमा ! देवाणंदा माहणी ममं अम्मगा, अहं णं देवाणंदाए माहणीए अत्तए; तएणं सा देवाणंदा माहणी तेणं
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org