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भगवती सूत्र - श. ९ उ. ३.३ ऋषभदत्त और देवानन्दा
हर्पित हुए) संरियवलय बाहा- हर्ष से फूलती हुई भुजाओं को कड़ों ने रोकी, कंचुयपरिविता - कंचुकी विस्तृत हुई, धाराहयकलंबगं - मेघधारा से विकसित कदम्व पुष्प की तरह, समूस वियरोमकूवा - रोमकूप विकसित हुए, अणिमिसाए - अनिमेष दृष्टि से, पेहमाणी-देखती हुई ।
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भावार्थ - इसके बाद वह ऋषभदत्त ब्राह्मण देवानन्दा ब्राह्मणी के साथ धार्मिक श्रेष्ठ रथ पर चढ़ा हुआ और अपने परिवार से परिवृत, ब्राह्मणकुण्ड ग्राम नामक नगर के मध्य में होता हुआ निकला और बहुशालक उद्यान में आया । तीर्थङ्कर भगवान् के छत्र आदि अतिशयों को देख कर उसने धार्मिक श्रेष्ठ रथ को खड़ा रखा और नीचे उतरा। रथ पर से उतर कर वह श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास पाँच प्रकार के अभिगम से जाने लगा। वे अभिगम इस प्रकार हैं । यथा: - ' सचित्त द्रव्यों का त्याग करना, इत्यादि दूसरे शतक के पाँचवें उद्देशक में कहे अनुसार यावत् तीन प्रकार की उपासना करने लगा। देवानन्दा ब्राह्मणी भी धार्मिक रथ से नीचे उतरी और अपनी दासियाँ आदि के परिवार से परिवृत होकर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास पांच प्रकार के अभिगम युक्त जाने लगी। वे अभिगम इस प्रकार हैं; - ( १ ) सचित्त द्रव्य का त्याग करना, ( २ ) अचित्त द्रव्य का त्याग नहीं करना अर्थात् वस्त्रादिक को समेट कर व्यवस्थित करना, ( ३ ) विनय से शरीर को अवनत करना ( नीचे की ओर झुका देना ), (४) भगवान् के दृष्टिगोचर होते ही दोनों हाथ जोड़ना और (५) मन को एकाग्र करना । इन पांच अभिगम द्वारा जहाँ श्रमण भगवान् महावीर स्वामी हैं, वहाँ आई और भगवान् को तीन बार आदक्षिण-प्रदक्षिणा करके वन्दन नमस्कार किया । वन्दन नमस्कार के बाद ऋषभदत्त ब्राह्मण को आगे कर अपने परिवार सहित शुश्रूषा करती हुई और नत बन कर सन्मुख स्थित रही हुई, विनय पूर्वक हाथ जोड़ कर उपासना करने लगी ।
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(४) इसके बाद उस देवानन्दा ब्राह्मणी के पाना चढ़ा अर्थात् उसके स्तनों में दूध आया । उसके नेत्र आनन्दाश्रुओं से भीग गये । हर्ष से प्रफुल्लित होती हुई उसकी भुजाओं को वलयों ने रोका ( उसकी भुजाओं के कडे तंग हो
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