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भगवती सूत्र -श. ९ उ. ३३ ऋषभदत्त अंर देवानन्दा
गच्छइ, तं जहा-सचित्ताणं दव्वाणं विसरणयाए, अचित्ताणं दवाणं अविमोयणयाए, विणयोणयाए गायलट्ठीए, चक्षुप्फासे अंजलिपग्गहेणं, मणस्स एगत्तीभावकरणेणं; जेणेव समणे भंगवं महावीरे तेणेव उवोगच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीर तिखुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ करित्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता उसभदलं माहणं पुरओ कटु ट्ठिया चेव सपरिवारा सुस्सूसमाणी, धर्मसमाणी, अभिमुहा विणएणं पंजलिउडा जाव पज्जुवासइ। ____४-तएणं सा देवाणंदा माहणी आगयपण्हाया, पप्फुयलोयणा संवरियवलयबाहा, कंचुयपरिक्खित्तिया धाराहयकलंबगं पिव समूसवियरोमकूवा समणं भगवं महावीरं अणिमिसाए दिट्ठीए पेहमाणी पेहमाणी+ चिट्ठइ । - कठिन शब्दार्य-सद्धि-माथ, णियगपरियाल संपरिबुडे-अपने परिवार से घिरी हुई, तित्थगराइसए-तीर्थङ्कर के अतिशय, ठवेइ-स्थिर किया- खड़ा रक्खा, पच्चोरुहइ -नीचे उतरे, अभिगमेणं अभिगच्छइ-धर्म सभा में जाने योग्य अभिगम (नियम) से गये, सचित्ताणं दवाणं विउसरणयाए-सचित्त द्रव्य का त्यागना, अचित्ताणं दवाणं अविउसरणयाए-अचित्त द्रव्य मर्यादित करना, एगसाडिएणं उत्तरासंगकरणेणं-एक (विना सिये) वस्त्र का उत्तरासंग करना, चक्खुप्फासे अंजलिप्पग्गहेणं-भगवान् के दृष्टि गोचर होते ही हाथ जोड़कर मस्तक परलगाना, मणस्स एगत्तीभावकरणेणं-मन को एकाग्र करना, पुरओ कट्ट-आगे करके, ट्ठिया-ठहरी, आगय पण्हाया-आयात प्रथवा (स्तन में दूध आया) पप्फुयलोयणा-प्रफुल्ल-लोचना (नयन
+ "देहमाणी" पाठ कई प्रतियों में है। इसीसे मिलता हुआ पाठ अंतगडदसा वगं ३ १०८ में है, वहां पहमाणी' है । अर्थ दोनों का समान ही है-डोशी। ..
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