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. भगवती सूत्र-श..९ उ. ३३ ऋपभदत्त और देवानन्दा
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शुभ अनुबन्ध के लिये होगा।' ऋषभदत्त से यह बात सुनकर देवानन्दा बडी प्रसन्न यावत् उल्लसित हृदय वाली हुई और दोनों हाथ जोड़, मस्तक पर अंजली करके ऋषभदत्त ब्राह्मण के इस कथन को विनय पूर्वक स्वीकार किया।
___२-तएणं से उमभदत्ते माहणे कोडंवियपुरिमे सद्दावेइ. कोडं. बियपुरिमे सदावेत्ता एवं वयामी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! लहुकरणजुत्त-जोइय-समखुरवालिहाण-समलिहियसिंगेहिं, जंबूणयामयकलावजुत्त-परिविसिटेहिं, स्ययामयघंटा-सुत्तरज्जुयपवरकंचणणाथपग्गहोग्गहियएहिं, णीलुप्पलकयामेलएहि, पवरगोणजुवाणएहिं णाणामणि-रयण-घंटियाजाल-परिगयं, सुजायजुग-जोत्तरज्जुयजुगपसत्थसुविरचियणिमियं, पवरलक्षणोववेयं धम्मियं जाणप्पवरं जुत्तामेव उवठ्ठवेह, उवटुवेत्ता मम एयमाणत्तियं पञ्चप्पिणह । तएणं ते कोडुवियपुरिसा उसभदत्तेणं माहणेणं एवं वुत्ता समाणा हट्ट जाव हियया, करयल एवं सामी ! तहत्ताणाए विणएणं वयणं जाव पडिसुणेत्ता खिप्पामेव लहुकरणजुत्त जाव धम्मियं जाणप्पवरं जुत्तामेव उवट्टवेत्ता जाव तमाणत्तियं पञ्चप्पिणंति । ___ कठिन शब्दार्थ-कोडुंबियपुरिसे-कौटुम्बिक (कर्मचारी) पुरुष, सद्दावेइ-बुलाये, खिप्पामेव-क्षिप्र-शीघ्रता से, लहुकरणजुत्ता-शीघ्र गतिबाले साधन युक्त, समखुरवालिहाण-समान खुरी और पूंछ वाले, समलिहियसिंहि-समान सिंग वाले, जंबूणयामयकलावजुत्त-स्वर्ण के बलाप-कठाभरण युक्त, सुत्तरज्जयपवरकंचणणत्थपग्गहोग्गहियएहि-स्वर्णमय सूत की नाथ से बचे हुए, गोलुप्पलकयामेलहि-नील कमल के सिरपेच युक्त, पवरगोगजुवाणएहि-उत्तम
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