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भगवती सूत्र-श. ९ उ. ३३ ऋषभदत्त और देवानन्दा
वंदामो णमंसामो जाव पज्जुवासामो; एयं णं इहभवे य, परभवे य हियाए सुहाए खमाए णिस्सेसाए आणुगामियत्ताए भविस्मइ । तएणं सा देवाणंदा माहणी उमभदत्तेणं माहणेणं एवं वुत्ता समाणी हट्ट जाव हियया, करयल जाव कट्टु उसमदत्तस्स माहणस्स एयमटुं विणएणं पडिसुणेड़। ___कठिन शब्दार्थ-इमोसे कहाए-यह कथा (बात), उवलद्धे-प्राप्त (जान) कर, हट्ठ-हृष्ट, आगासगएण चक्केणं-आकाशगत चक्र, अहापडिरूवं-यथाप्रतिरूप (कल्प के अनुसार), विउलस्स-विपुल, अट्ठस्स-अर्थ का, हियाए-हितकारी, सुहाए-मुन्वकारी, खमाएक्षेमकारी, णिस्सेसाए-निःश्रेयमकारी, आणुगामियत्ताए-अनुगमन करने, (शुभ बन्ध करने ) वाली।
भावार्थ-श्रमग भगवान महावीर स्वामी के आगमन की बात सुनकर वह ऋषभदत्त ब्राह्मण बड़ा प्रसन्न हुआ। यावा उल्लसित हृदय वाला हुआ। वह अपनी पत्नी देवानन्दा ब्राह्मणी के पास आया और इस प्रकार कहा-'हे देवानुप्रिये ! तीर्थ की आदि के करने वाले यावत् सर्वज्ञ सर्वदर्शी श्रमण भगवान् महावीर स्वामी, आकाश में रहे हुए चक्र से युक्त यावत् सुखपूर्वक विहार करते हुए यहां पधारे और बहुशालक नामक उदयान में यथायोग्य अवग्रह ग्रहण कर के यावत् विचरते है । हे देवानुप्रिये ! तथारूप के अरिहन्त भगवान् के नामगोत्र के श्रवण का भी महान् फल है, तो उनके सम्मुख जाने, वन्दन नमस्कार करने, प्रश्न पूछने और पर्युपासना करने आदि से होनेवाले फल के विषय में तो कहना ही क्या है । तथा एक भी आर्य और धार्मिक सुवचन के श्रवण से महाफल होता है, तो फिर विपुल अर्थ को ग्रहण करने से महाफल हो, इसमें तो कहना ही क्या है । इसलिये हे देवानुप्रिये ! अपन चलें और श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को वन्दन नमस्कार करें यावत् उनकी पर्युपासना . करें। यह कार्य अपने लिये इस भव में और परभव में हित, सुख, संगतता, निःश्रेयस और
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