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भगवती मूत्र-स. ९. ३. ३२ गांगेय को श्रमा
णं भंते ! तुम्भं अंतियं चाउज्जामाओ धम्माओ पंचमहब्वइयं, एवं जहा कालासवेसियपुत्तो तहेव भाणियव्वं, जावं सव्वदुक्खप्पहीणे ।
॥णवमसए गंगेयो बत्तीसइमो उद्देसो समत्तो ।।
.. कठिन शब्दार्थ-तप्पभिई-तब से लेकर, पच्चभिजाणइ-विश्वास पूर्वक जाना ।
भावार्थ-५१ प्रश्न-इसके बाद गांगेय अनगार ने श्रमण भगवान महावीर स्वामी को सर्वज्ञ और सर्वदर्शी जाना। पश्चात् गांगेय अनगार ने श्रमण भगवान महावीर स्वामी को तीन बार आदक्षिण-प्रदक्षिणा की, वन्दना नमस्कार किया, वन्दना नमस्कार करके इस प्रकार निवेदन किया-“हे भगवन् ! में आपके पास चार यामरूप धर्म से पांच महावत रूप धर्म को अंगीकार करना चाहता हूँ।" इस प्रकार सारा वर्णन पहले शतक के नौवें उद्देशक में कथित कालास्यवेषिकपुत्र अनगार के समान जानना चाहिये । यावत् गांगेय अनगार सिद्ध, बुद्ध, मुक्त यावत् समस्त दुःखों से रहित बने ।
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
विवेचन-पूर्वोक्त प्रश्नोत्तरों से जब गांगेय अनगार को यह विश्वास हो गया कि श्रमण भगवान् महावीर स्वामी सर्वज्ञ, सर्वदर्शी हैं, तब उन्होंने चतुर्याम धर्म से पञ्चयाम धर्म को स्वीकार किया और क्रमशः कालान्तर में मोक्ष पधारे ।
॥ इति नौवें शतक का बत्तीसवां उद्देशक सम्पूर्ण ॥
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