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________________ भगवती सूत्र - स. ९ उ. ३२ मनुष्य प्रवेशनक मनुष्यों में होते हैं । अथवा एक सम्मूच्छिम मनुष्यों में होता है और संख्यात गर्भज मनुष्यों में होते हैं । अथवा दो सम्मूच्छिम मनुष्यों में होते हैं और संख्यात गर्भज मनुष्यों में होते हैं। इस प्रकार एक-एक बढ़ाते हुए यावत् अथवा संख्यात सम्मूच्छिन मनुष्यों में और संख्यात गर्भज मनुष्यों में होते हैं । ३४ प्रश्न - हे भगवन् ! असंख्यात मनुष्य, मनुष्य-प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करने के सम्बन्ध में प्रश्न । १६७३ ३४ उत्तर - हे गांगेय ! वे सभी सम्मूच्छिम मनुष्यों में होते हैं । अथवा असंख्यात सम्मूच्छिम मनुष्यों में होते हैं और एक गर्मज मनुष्यों में होता है । अथवा असंख्यात सम्मूच्छिम मनुष्यों में होते हैं और दो गर्भज मनुष्यों में होते हैं । अथवा इस प्रकार यावत् असंख्यात सम्मूच्छिम मनुष्यों में होते हैं और संख्यात गर्भज मनुष्यों में होते हैं । > ३५ प्रश्न – हे भगवन् ! मनुष्य, उत्कृष्ट रूप से किस प्रवेशनक में होते हैं ? इत्यादि प्रश्न | ३५ उत्तर- हे गांगेय ! वे सभी सम्मूच्छिम मनुष्यों में होते हैं । अथवा सम्मूच्छिम मनुष्यों में और गर्भज मनुष्यों में होते हैं । ३६ प्रश्न - हे भगवन् ! सम्मूच्छिम मनुष्य प्रवेशनक और गर्भज मनुष्य प्रवेशतक, इनमें कौन प्रवेशनक किस प्रवेशनक से यावत् विशेषाधिक है । ३६ उत्तर - हे गांगेय ! सब से अल्प गर्भज मनुष्य प्रवेशनक है, उससे 'सम्मूच्छिन मनुष्य-प्रवेशनक असंख्यात गुण हैं । विवेचन - मनुष्य प्रवेशन में दो स्थान हैं । यथा - सम्मूच्छिम मनुष्य-प्रवेशनक और गर्भज मनुष्य प्रवेशनक । इन दोनों की अपेक्षा एक से लेकर संख्यात तक विकल्प पूर्ववत् समझना चाहिये । संख्यात पद में द्विक-संयोग में पूर्ववत् ग्यारह् विकल्प होते हैं । संख् पद में पहले बारह विकल्प बतलाये गये हैं, किन्तु यहां ग्यारह विकल्प ही होते हैं । क्योंकि यदि सम्मूच्छिम मनुष्यों में असंख्यातपन और गर्भजमनुष्यों में भी असंख्यातपन हो, तभी बारहवां विकल्प बन सकता है, किन्तु यह संगत नहीं । क्योंकि गर्भज मनुष्य असंख्यात नहीं हैं, अतएव उनके प्रवेशतक में असंख्यातपन नहीं हो सकता । अतः असंख्यात पद में भी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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