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भगवती सूत्र-श. ९.उ. ३२ तिर्यच योनिक प्रवेशनक
नरयिक जीवों के विषय में कहा, उसी प्रकार तियंच-योनिक प्रवेशनक के विषय में भी कहना चाहिये । यावत् असंख्य तियंच-योनिक प्रवेशनक तक कहना चाहिय ।
२८ प्रश्न-हे भगवन् ! उत्कृष्ट तियंच-योनिक प्रवेशनक विषयक प्रश्न ?
२८ उत्तर-हे गांगेय ! वे सभी एकेन्द्रियों में होते हैं । अथवा एकेन्द्रिय और बेइन्द्रियों में होते हैं, जिस प्रकार नरयिक जीवों में संचार किया गया है, उसी प्रकार तियंचयोनिक प्रवेशनक के विषय में भी संचार करना चाहिये। एकेन्द्रिय जीवों को न छोड़ते हुए द्विकसंयोगी, त्रिकसंयोगी, चतुःसंयोगी और पचसंयोगी भंग उपयोगपूर्वक कहना चाहिये । यावत् अथवा एकेन्द्रिय जीवों में, बेइन्द्रियों में यावत् पंचेन्द्रियों में होते हैं।
२९ प्रश्न-हे भगवन् ! एकेन्द्रिय तिर्यंच-योनिक प्रवेशनक यावत् पंचेंद्रियतिर्यंच-योनिक प्रवेशनक, इनमें कौन किससे यावत् विशेषाधिक है ?
२९ उत्तर-हे गांगेय ! सब से थोडे पंचेन्द्रिय तिर्यंच-योनिक प्रवेशनक हैं, उनसे चतुरिन्द्रिय तिर्यंच-योनिक प्रवेशनक विशेषाधिक हैं, उनसे तेइन्द्रिय तिर्यच-योनिक प्रवेशनक विशेषाधिक हैं, उनसे द्वीन्द्रिय तिर्यच-योनिक प्रवेशनक विशेषाधिक हैं और उनसे एकेन्द्रिय तिर्यञ्च-योनिक प्रवेशनक विशेषाधिक हैं।
विवेचन-एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक तिर्यंच होते हैं। उनका प्रवेशनक ऊपर बतलाया गया है । . शङ्का-ऊपर जो यह बतलाया गया है कि 'एक जीव एकेन्द्रियों में उत्पन्न होता है, यह कैसे ? क्योंकि एकेन्द्रियों में एक जीव कदापि उत्पन्न नहीं होता, वहां प्रति-समय अनन्त जीव उत्पन्न होते हैं ।
__समाधान-इस शंका का समाधान यह है कि सबसे पहले 'प्रवेशनक' शब्द का अर्थ जानना आवश्यक है। उसका अर्थ यह है 'विजातीय देवादि भव से निकल कर एकेन्द्रियादि में उत्पन्न होना'-'प्रवेशनक'कहलाता है । इस अपेक्षा से एक जीव भी मिल सकता है। क्योंकि प्रवेशनक का यह अर्थ है कि विजातीय भव से आकर विजातीय भव में उत्पन्न होना । सजातीय जीव, सजातीय में उत्पन्न हों, यह प्रवेशनक नहीं कहलाता । क्योंकि वह तो एकेन्द्रिय जाति में प्रविष्ट है ही। अर्थात् एकेन्द्रिय मरकर एकेन्द्रिय में उत्पन्न हो, वह
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