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भगवती सूत्र-श. ९ उ. ३२ मनुष्य प्रवेशनक
प्रवेशनक की गणना में नहीं आता; जो अनन्त उत्पन्न होते हैं, वे तो एकेन्द्रिय में से ही हैं।
एक जीव अनुक्रम से एकेन्द्रियादि पांच स्थानों में उत्पन्न हो, तव उसके पांच भंग होते हैं। दो जीव भी एक एक स्थल में साथ उत्पन्न हों, तो पांच ही भंग होते हैं और द्विकसंयोगी दस भंग होते हैं । तीन से लेकर असंख्यात तिर्यंच-योनिक जीवों का प्रवेशनक नैरयिक प्रवेशनक के समान जानना चाहिये, परन्तु नै रयिक जीव, सात नरक पृध्वियों में उत्पन्न होते हैं
और तिर्यंच जीव, एकेन्द्रियादि पांच स्थानों में उत्पन्न होते हैं। इसलिये भंगों की संख्या में भिन्नता है, वह बुद्धिमानों को स्वयं विचार कर जान लेनी चाहिये ।
___ यद्यपि अनन्त एकेन्द्रिय जीव उत्पन्न होते हैं, परन्तु ऊपर बतलाया हुआ प्रवेगनक का लक्षण असंख्यात जीवों में ही घटित हो सकता है । इसलिये असंख्यात तक ही प्रवेशनक कहा गया है।
मनुष्य प्रवेशनक
३० प्रश्न-मणुस्सप्पवेसणए णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ?
३० उत्तर-गंगेया ! दुविहे पण्णत्ते तं जहा-संमुच्छिममणुस्सप्पवेसणए, गम्भवक्कंतियमणुस्सप्पवेसणए य।
३१ प्रश्न-एगे भंते ! मणुस्से मणुस्सप्पवेसगएणं पविसमाणे किं समुच्छिममणुस्सेसु होजा, गम्भवफ्कंतियमणुस्सेसु होज्जा ?
३१ उत्तर-गंगेया ! संमुच्छिममणुस्सेसु वा होजा, गम्भवक्कतियमणुस्सेसु वा होजा।
३२ प्रश्न-दो भंते ! मणुस्सा० पुच्छा । . . ३२ उत्तर-गंगेया ! संमुच्छिममणुस्सेसु वा होजा, गम्भवपकं. तियमणुस्सेमु वा होजा । अहवा एगे संमुच्छिममणुस्सेसु वा होजा
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