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भगवती सूत्र - श. ७ उ. ६ भरत में दुषम-दुषमा काल
वहुला, पंकबहुला, पणगबहुला, चलणिबहुला, बहूणं धरणिगोयराणं सत्ताणं दुणिक्कमा यावि भविस्सइ ।
. कठिन शब्दार्थ-उत्तमकट्ठपत्ताए-अत्यंत उत्कट अवस्था प्राप्त, आयारभावपडोयारेआकारभावप्रत्यवतार-आकार और भावों का आविर्भाव, हाहाभूए-हाहाकार भूत, भंभाभूएकराहने रंभाने जैसे, खरफरुसधूलिमइला-कठोर स्पर्श और धूल से मेले शरीर वाले, दुन्विसहादुम्सह-मुश्किल से सहन करने योग्य, वाउल-व्याकुल, वायासंवट्टगा य वाहिति-संवर्तक वायु चलेगा, धूमाहिति-धूल उड़ने से, रओसला-रजस्वला, रेणुकलुसतमपडलणिरालोगारज से मलीन हो अंधकार के पट जैसी, नहीं दिखाई देने वाली, समयलक्खयाए-काल की रुक्षता से, चंडाणिलपहयतिक्खधाराणिवायपउरंवासं वासिहिति-भयानक वायु के साथ तीक्ष्ण धारा से बहुत बरसात होगी, अदुत्तरं-अधवा, डोंगर-डूंगर-पर्वत, दुणिक्कमा-दुनिष्कमामुश्किल से पार करने योग्य ।
भावार्थ-१७ प्रश्न-हे भगवन् ! इस जम्बूद्वीप नामक द्वीप के भरत क्षेत्र में इस अवपिणी काल के दुषमदुषमनामक छठा आरा जब अत्यन्त उत्कट अवस्था को प्राप्त होगा, तब इस भरतक्षेत्र का आकारभावप्रत्यवतार (आकार और भावों का आविर्भाव) कैसा होगा?
१७ उत्तर-हे गौतम ! वह काल हाहाभूत अर्थात् मनुष्यों के हाहाकारयुक्त, भंभाभूत अर्थात् पशुओं के दुःखयुक्त आर्तनाद से युक्त (जिस काल में पशु भाँ भां शब्द करेंगे) कोलाहलभूत (दुःख से पीड़ित पक्षी जिसमें कोलाहल करेंगे) होगा। काल के प्रभाव से अत्यन्त कठोर, धूमिल (धूल से मलीन बने हुए), असह्य, व्याकुल (जीवों को आकुल-व्याकुल कर देने वाली) और भयंकर वायु एवं संवर्तक वायु चलेगी। इस काल में बारबार चारों तरफ धूल उड़ती हुई होने से रज से मलीन, अन्धकार युक्त और प्रकाश-शून्य दिशाएँ होगी। काल की रुक्षता से चन्द्रमा से अत्यन्त शीतलता गिरेगी और सूर्य अत्यन्त तपेंगे। अरस मेघ अर्थात खराब रस वाले मेघ, विरस (विरुद्ध रस वाले) मेघ, क्षार मेघ अर्थात् खारे पानी वाले मेघ, तिक्त मेघ अर्थात् खट्टे पानी वाले मेघ, अग्नि मेघ अर्थात अग्नि के समान गर्म पानी वाले मेघ, विद्युत्मेघ अर्थात् बिजली सहित मेघ,
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