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________________ भगवती सूत्र - ७ उ ६ भरत में दुपम दुपमा काल विषमेघ अर्थात् विष सरीखे पानी वाले मेघ, अशनिमेघ अर्थात् ओले (गडे ) बरसाने वाले मेघ अथवा वस्त्र आदि के समान पर्वतादि को तोड़ने वाले मेघ, अपेय अर्थात् नहीं पीने योग्य पानी वाले मेघ, तृषा को शान्त न कर सकने वाले पानी युक्त मेघ, व्याधि, रोग और वेदना उत्पन्न करने वाले मेघ, मन को अरुचिकर पानी वाले मेघ, प्रचण्डं वायु युक्त तीक्ष्ण धाराओं के साथ बरसेंगे । जिससे भरत क्षेत्र के ग्राम, आकर, नगर, खेट, कर्बट, मडम्ब, द्रोणमुख, पट्टन और आश्रम, इन स्थानों में रहने वाले मनुष्य, चतुष्पद, खग ( आकाश में उड़ने वाले पक्षी) ग्राम और जंगलों में चलने वाले त्रस जीव तथा बहुत प्रकार के वृक्ष, गुल्म, लताएँ, बेलें, घास, दूब, पर्वक (गन्ने आदि ) शाल्यादि धान्य, प्रवाल और अंकुर आदि तृण वनस्पतियाँ, ये सब विनष्ट हो जायेगी । वैताढ्य पर्वत को छोड़कर शेष सभी पर्वत, छोटे पहाड़, टीले, स्थल, रेगिस्तान, आदि सब का विनाश हो जायगा। गंगा और सिन्धु, इन दो नदियों को छोड़कर शव नदियां, पानी के झरने, गड्ढे, सरोवर, तालाब आदि सब नष्ट हो जायेंगे । दुर्गम और विषम, ऊँचे और नीचे सब स्थान समतल हो जायेंगे । १८ प्रश्न - हे भगवन् ! उस समय में भरत क्षेत्र की भूमि का आकारभावप्रत्यवतार ( आकार और भावों का आविर्भाव - स्वरूप) कैसा होगा ? ܕ ܕ ܕ . १८ उत्तर - हे गौतम ! उस समय इस भरतक्षेत्र की भूमि अंगार के समान, मुर्मुर ( छाणा को अग्नि) के समान, भस्मीभूत (गर्म राख के समान ), तपे हुए लोह के कड़ाहे के समान, ताप द्वारा अग्नि के समान, बहुत धूल वाली, बहुत रज वाली, बहुत कीचड़ वाली बहुत शैवाल वाली, बहुत चलनि ( कर्दम ) वाली होगी। जिस पर पृथ्वीस्थित जीवों को चलना बड़ा ही कठिन होगा । विवेचन – इस अवसर्पिणी काल के दुपमदुषमा नामक छठे आरे में इस भरत क्षेत्र का कैसा स्वरूप होगा ? मनुष्य और पशु-पक्षियों की क्या दशा होगी और भूमि का स्वरूप कैसा होगा, इसका वर्णन ऊपर बतलाया गया है । यह अवसर्पिणी काल है । इसलिये इसमें जीवों के संहनन और संस्थान क्रमशः हीन होते जायेंगे। आयु, अवगाहना, उत्थान, कर्म, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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