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भगवती मूत्र-श. ७ उ, ६ भरत में दुषम-दुषमा काल
करने से, दूसरे जीवों को पीटने से, दूसरे जीवों को परिताप उत्पन्न करने से, बहुत से प्राग, भूत, जीव और सत्त्वों को दुःख देने से, शोक उत्पन्न करने से यावत परिताप उत्पन्न करने से जोव, असाता-वेदनीय कर्म बांधते हैं। इसी प्रकार नरयिकों में और इसी प्रकार यावत् वैमानिक पर्यन्त जानना चाहिये ।
विवेचन-यहाँ साता-वेदनीय कम बन्ध के दस कारण बनलाये गये हैं । यथा(१) प्राण (२) भूत (३) जीव (४) सत्त्व, इन चारों पर अनुकम्पा करने से । (५) बहुत प्राण, भूत, जाव और सत्त्वों पर अनुकम्पा करने से । (६) उन्हें शोक नहीं उपजाने से । (७) खेदित नहीं करने से । (८) वेदना (पीड़ा) नहीं उपजाने से । (५) नहीं पीटने से और (१०) परिताप नहीं उपजाने से । इन दस कारणों से जीव, साता-वेदनीय कर्म बांधता है। ... असाता-वेदनीय कर्म बांधने के बारह कारण बतलाये गये हैं । यथा-(१) दूसरे जीवों को दुःख देने से । (२) शोक उत्पन्न करने से । (३) खेद उपजाने से । (४) पीड़ा उपजाने से । (५) पीटने से । (६) परिताप उपजाने से । (७ से १२) बहुत प्राण, भूत, जीव, सत्त्वों को दुःख देने से, शोक उपजाने से, खेद उत्पन्न करने से, पीड़ा पहुंचाने से पीटने मे और परिताप उपजाने से जीव, असातावेदनीय कर्म वांधना है ।
भरत में दुषम-दुषमा काल
१७ प्रश्न-जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए दुसमदुसमाए समाए उत्तमकट्टपत्ताए भरहस्स वासस्स केरिसए आयारभावपडोयारे भविस्सइ ? ।
१७ उत्तर-गोंयमा ! कालो भविस्सइ हाहाभूए, भंभाभूए, कोलाहलगभूए; समयाणुभावेण य णं खर-फरुम-धूलिमइला,
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