________________
भगवती मूत्र-श. ७ उ. ६ माता-असाता वेदनीय
कजति ?
१६ उत्तर-गोयमा ! परदुक्खणयाए, परसोयणयाए, परजूरणयाए, परतिप्पणयाए, परपिट्टणयाए, परपरियावणयाए; बहूणं पाणाणं, जाव सत्ताणं दुक्खणयाए, सोयणयाए जाव परियावणयाए; एवं खलु गोयमा ! जीवाणं अस्सायावेयणिजा कम्मा कजंति । एवं णेरइयाण वि, एवं जाव वेमाणियाणं । ___ कठिन शब्दार्थ-सायावेयणिज्जा-सुखपूर्वक वेदी जाने वाली, पाणाणुकंपयाए-प्राणियोंकी अनुकम्पा करने से, परसोयणयाए-दूसरे जीवों को शोक कराने से, परजूरणयाए-दूसरों को खेदित करने से, तिप्पणयाए-टपटप आंसू गिराने से, परपिट्टणयाए-दूसरों को पीटने से ।
भावार्थ-१३ प्रश्न-हे भगवन् ! जीव, साता-वेदनीय कर्मों का बन्ध करते हैं ?
१३ उत्तर-हाँ, गौतम ! करते हैं। १४ प्रश्न-हे भगवन् ! जीव, सातावेदनीय कर्म किस प्रकार बांधते हैं ?
१४ उत्तर-हे गौतम ! प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों पर अनुकम्पा करने से, बहुत से प्राणों, मतों और सत्त्वों को दुःख न देने से, उन्हें शोक उत्पन्न न करने से, उन्हें खेदित एवं पीड़ित न करने से, उनको न पीटने से, उनको परिताप (कष्ट ) नहीं देने से जीव, सातावेदनीय कर्म बांधते हैं। इसी प्रकार नरयिकों में भी जानना चाहिये, यावत् वैमानिक पर्यन्त इसी तरह कहना चाहिये।
१५ प्रश्न-हे भगवन् ! जीव, असातावेदनीय कर्म बांधते हैं ? १५ उत्तर-हां, गौतम ! बांधते हैं। १६ प्रश्न-हे भगवन् ! जीव, असाता-वेदनीय कर्म किस प्रकार बांधते हैं ?
१६ उत्तर-हे गौतम ! दूसरे जीवों को दुःख देने से, दूसरे जीवों को शोक उत्पन्न करने से, दूसरे जीवों को खेद उत्पन्न करने से, दूसरे जीवों को पीडित
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org