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भगवती सूत्र - श. ७ उ. ५ खेचर तिर्यच के भेद
विमाणे वीईवएजा, एमहालया णं गोयमा ! ते विमाणा पण्णत्ता।'
जोणीसंगह-लेसा दिट्ठी णाणे य जोग-उवओगे । उववाय-ट्टिइ-समुग्धाय-चवण-जाइ-कुल-विहीओ॥
* सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति ।
॥ सत्तमसयस्स पंचमो उद्देसो सम्मत्तो॥ कठिन शब्दार्थ-खहयर-खेचर, वीईवएज्जा-उल्लंघन करता है ।
भावार्थ-१ प्रश्न-राजगृह नगर में गौतमस्वामी ने यावत् इस प्रकार पूछा-हे भगवन् ! खेचर पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्च जीवों का योनि-संग्रह कितने प्रकार का कहा गया है ?
१ उत्तर-हे गौतम ! इनका योनि-संग्रह तीन प्रकार का कहा गया है। यथा-अण्डज, पोतज और सम्मच्छिम । ये सारा वर्णन जीवाभिगम सूत्र में कहे अनुसार कहना चाहिये यावत् 'उन विमानों को उल्लंघा नहीं जा सकता। इतने बड़े विमान कहे गये हैं, यहां तक सारा वर्णन कहना चाहिये।
___ संग्रह गाथा का अर्थ इस प्रकार है-योनि संग्रह, लेश्या, दृष्टि, ज्ञान, योग, उपयोग, उपपात, स्थिति, समुद्धात, च्यवन और जातिकुलकोटि । ... हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । ऐसा कहकर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं।
विवेचन--खेचर-पंचेन्द्रिय तियंञ्चों के तीन प्रकार का योनि-संग्रह कहा गया है। उत्पत्ति के हेतु को 'योनि' कहते हैं और अनेक का कथन एक शब्द के द्वारा कर दिया जाय, उसे 'संग्रह' कहते हैं । खेचर पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अनेक होते हुए भी तीन प्रकार के योनि. संग्रह के द्वारा उनका कथन किया गया है। यथा-अण्डज, पोतज और सम्मूच्छिम । अण्डे से उत्पन्न होने वाले जीव 'अण्डज' कहलाते है । जैसे कबूतर, मोर, हम आदि । जो जीव जन्म के समय चर्म से आवृत होकर कोथली सहित उत्पन्न होते हैं, वे 'पोतज' कहलाते हैं । जैसे-चिमगादड़ आदि कोई तोता आदि जो माता-पिता के संयोग के बिना उत्पन्न होते हैं
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