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भगवती सूत्र - श. ७ उ ६ आयु का बन्ध और वेदन कहां ?
वे सम्मूच्छिम खेचर - तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रिय कहलाते हैं ।
खेचर- तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रिय में अण्डज और पोतज स्त्री, पुरुष और नपुंसक तीनों होते हैं । सम्मूच्छिम जीव नपुंसक ही होते हैं ।
खंचर पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्च में लेश्या छह, दृष्टि तीन, ज्ञान तीन, ( भजना से ) अज्ञान तीन ( भजना से ) योग तीन, उपयोग दो पाये जाते हैं । सामान्यतः ये चारों गति से आते हैं और चारों गति में जाते हैं। इनकी स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग है । केवलो - समुदघात और आहारक समुद्घात को छोड़कर इनमें पांच समुद्घात पाये जाते हैं । इनकी बारह लाख कुल कोड़ी है ।
इस प्रकरण में अन्तिम सूत्र विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित का है । यदि कोई देव नौ आकाशांतर प्रमाण ( ८५०७४०१ योजन) का एक कदम भरता हुआ छह महीने तक चले तो किसी विमान के अन्त को प्राप्त करता है और किसी विमान के अन्त को प्राप्त नहीं करता । विजयादि चार विमानों का इतना विस्तार है ।
इन सब बातों का विस्तृत वर्णन जीवाभिगम सूत्र से जान लेना चाहिये ।.
॥ इति सातवें शतक का पांचवा उद्देशक सम्पूर्ण ॥
शतक ७ उद्देशक
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आयु का बन्ध और वेदन कहां ?
१ प्रश्न - रायगिहे जाव एवं वयासी - जीवे णं भंते ! जे भविए रइएस उववजित्तए से णं भंते ! किं इहगए णेरइयाज्यं पकरेह, उववजमाणे रइयाज्यं पकरेइ, उववण्णे णेरइयाउयं पकरेह ? १ उत्तर - गोयमा ! इहगए णेरइयाउयं पकरेइ, णो उववज्जमाणे
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