________________
११४६
भगवती सूत्र-श. ७ उ. ४ संसार-समापनक जीव
भावार्थ-१ प्रश्न-राजगृह नगर में गौतम स्वामी ने यावत् इस प्रकार पूछा । हे भगवन् ! संसारसमापन्नक (संसारी) जीव कितने प्रकार के कहे गये हैं ?
१ उत्तर-हे गौतम! संसारसमापनक जीव, छह प्रकार के कहे गये हैं। यथा-पृथ्वोकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक और त्रसकायिक । यह सारा वर्णन जीवाभिगम सूत्र के तिर्यंच के दूसरे उद्देशक में कहे अनुसार सम्यक्त्व क्रिया और मिथ्यात्व क्रिया पर्यन्त कहना चाहिये ।
___ संग्रह गाथा का अर्थ इस प्रकार है-जीवों के छह भेद, पृथ्वीकायिक जीवों के छह भेद । पथ्वीकायिक जीवों की स्थिति, भवस्थिति, सामान्य कायस्थिति, निर्लेपन, अनगार सम्बन्धी वर्णन, सम्यक्त्व क्रिया और मिथ्यात्व क्रिया।
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। ऐसा कहकर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं।
विवेचन-पृथ्वीकायिक जीवों के छह भेद कहे गये हैं । यथा
- सहा य सुद्ध बालू य, मणोस्सिला सक्कराय खरपुढवी। .. इग बार चोद्दस सोलट्ठार, बावीससयसहस्सा ।। १ ॥
अर्थ-१ सहा (श्लक्ष्णा) २ शुद्ध पृथ्वी, ३ बालुका पृथ्वी, ४ मणोसिला (मन:शिला) पृथ्वी, ५ शर्करापृथ्वी ६ खरपृथ्वी। इन छहों पृथ्वीकायिक जीवों की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है, उत्कृष्ट स्थिति' श्लक्ष्णा पृथ्वी की एक हजार वर्ष, शुद्ध-पृथ्वी की बारह हजार वर्ष, बालुका पृथ्वी की चौदह हजार वर्ष, मणोसिला (मनःशिला- मेन सिल) पृथ्वी की सोलह हजार वर्ष, शकंरा पृथ्वी की अठारह हजार वर्ष और खर-पृथ्वी की बाईस हजार वर्ष की है।
नारकी और देवता की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की है और उत्कृष्ट स्थिति तेतीस सागरोपम की है। तिर्यञ्च और मनुष्य की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की है । इस तरह सभी जीवों की भवस्थिति प्रज्ञापना सूत्र के चौथे स्थिति पद के अनुसार कहनी चाहिये।
निर्लेपन-वर्तमान समय में तत्काल के उत्पन्न हए पृथ्वीकाय के जीवों को प्रति समय
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org