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________________ ११४४ भगवती सूत्र-श. ७ उ. ३ शाश्वत अशाइत नैरयिक १५ उत्तर-गोयमा ! सिय सासया, सिय असासया । . प्रश्न-से केणटेणं भंते ! एवं बुचइ-णेरड्या सिय सासया, सिय असासया ? ... उत्तर-गोयमा ! अव्वोंच्छित्तिणयट्टयाए सासया, वोच्छित्ति- . णयट्टयाए असासया, से तेणटेणं जाव सिय सासया, सिय असासया; एवं जाव वेमाणिया जाव सिय असासया । . * सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति* ॥ सत्तमसए तईओ उद्देसो समत्तो। कठिन शब्दार्थ-अव्वोच्छित्तिणयट्टयाए-द्रव्याथिकनय की अपेक्षा, वोच्छित्तिणयट्टयाए-पर्यायाथिकनय की अपेक्षा से । ____ भावार्थ- १५ प्रश्न-हे भगवन् ! नरयिक जीव शाश्वत हैं या अशाश्वत हैं ? १५ उत्तर-हे गौतम ! कथंचित् शाश्वत हैं और कथंचित अशाश्वत हैं। प्रश्न- हे भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहते हैं कि नैरयिक जीव, कथंचित शाश्वत है और कथंचित् अशाश्वत हैं। उत्तर-हे गौतम ! अव्यवच्छित्ति (अव्युच्छित्ति-द्रव्याथिक) नय की अपेक्षा शाश्वत हैं और व्यवच्छित्ति (व्युच्छित्ति--पर्यायाथिक) नय की अपेक्षा अशाश्वत हैं। इस कारण हे गौतम ! ऐसा कहता हूँ कि नरयिक जीव, कथंचित् शाश्वत हैं और कथंचित् अशाश्वत हैं, इस प्रकार यावत् वैमानिक पर्यन्त कहना चाहिये कि वे कथंचित् शाश्वत और कथंचित् अशाश्वत हैं। __हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। ऐसा कहकर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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