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भगवती सूत्र-श. ७ उ. ३ शाश्वत अशाइत नैरयिक
१५ उत्तर-गोयमा ! सिय सासया, सिय असासया । . प्रश्न-से केणटेणं भंते ! एवं बुचइ-णेरड्या सिय सासया, सिय असासया ? ... उत्तर-गोयमा ! अव्वोंच्छित्तिणयट्टयाए सासया, वोच्छित्ति- . णयट्टयाए असासया, से तेणटेणं जाव सिय सासया, सिय असासया; एवं जाव वेमाणिया जाव सिय असासया । .
* सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति*
॥ सत्तमसए तईओ उद्देसो समत्तो। कठिन शब्दार्थ-अव्वोच्छित्तिणयट्टयाए-द्रव्याथिकनय की अपेक्षा, वोच्छित्तिणयट्टयाए-पर्यायाथिकनय की अपेक्षा से ।
____ भावार्थ- १५ प्रश्न-हे भगवन् ! नरयिक जीव शाश्वत हैं या अशाश्वत हैं ?
१५ उत्तर-हे गौतम ! कथंचित् शाश्वत हैं और कथंचित अशाश्वत हैं।
प्रश्न- हे भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहते हैं कि नैरयिक जीव, कथंचित शाश्वत है और कथंचित् अशाश्वत हैं।
उत्तर-हे गौतम ! अव्यवच्छित्ति (अव्युच्छित्ति-द्रव्याथिक) नय की अपेक्षा शाश्वत हैं और व्यवच्छित्ति (व्युच्छित्ति--पर्यायाथिक) नय की अपेक्षा अशाश्वत हैं। इस कारण हे गौतम ! ऐसा कहता हूँ कि नरयिक जीव, कथंचित् शाश्वत हैं और कथंचित् अशाश्वत हैं, इस प्रकार यावत् वैमानिक पर्यन्त कहना चाहिये कि वे कथंचित् शाश्वत और कथंचित् अशाश्वत हैं।
__हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। ऐसा कहकर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं।
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