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________________ भगवती सूत्र - श. ७ उ. ३ शाश्वत अशाश्वत नैरयिक और जिस समय निर्जरते हैं, उस समय वेदते नहीं, अन्य समय में वेदते हैं और अन्य समय में निर्जरते हैं। वेदना का समय दूसरा है और निर्जरा का समय दूसरा है । इसका कारण यावत् वेदना का जो समय है, वह निर्जरा का समय नहीं । १४ प्रश्न - हे भगवन् ! नरयिक जीवों के जो वेदना का समय है, वह निर्जरा का समय है और जो निर्जरा का समय है, वह वेदना का समय है ? १४ उत्तर - हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं । प्रश्न - हे भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहते हैं कि नैरयिकों के जो वेदना का समय है, वह निर्जरा का समय नहीं और जो निर्जरा का समय है, वह वेदना का समय नहीं ? उत्तर - हे गौतम! नैरयिक जीव, जिस समय में वेदते हैं, उस समय में निर्जरते नहीं और जिस समय में निर्जरते हैं, उस समय में वेदते नहीं । अन्य समय में वेदते हैं और अन्य समय में निर्जरते हैं। उनके वेदना का समय दूसरा है और निर्जरा का समय दूसरा है। इस कारण से ऐसा कहता हूँ कि यावत् जो निर्जरा का समय है, वह वेदना का समय नहीं । इस वैमानिक पर्यन्त चौवीस ही दण्डक में जान लेना चाहिये । प्रकार यावत् विवेचन- - उदय में आये हुए कर्म को भोगना 'वेदना' कहलाती है और जो कर्म भोगकर क्षय कर दिया गया है, वह 'निर्जरा' कहलाती है । इसलिये वेदना को 'कर्म' कहा गया है और निर्जरा को 'नोकर्म' कहा गया है। वेदना कर्म की होती है । इसलिये वेदना को 'कर्म' कहा गया है। कर्म वेदित हो गया, इसलिये कर्म के अभाव को 'निर्जरा' कहते हैं । Jain Education International ११४३ शाश्वत अशाश्वत नैरयिक १५ प्रश्न - रइया णं भंते ! किं सासया, असासया ? For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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