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________________ ११३८ भगवती सूत्र-श. ७ उ. ३ वेदना और निर्जरा , उत्तर-गोयमा ! कम्मं वेयणा, णोकम्मं णिजरा, से तेणटेणं गोयमा ! जाव ण सा वेयणा । ___ ९ प्रन-णेरइयाणं भंते ! जा वेयणा सा णिजरा, जा गिजरा सा वेयणा? ९ उत्तर-गोयमा ! णो इणटे समटे । प्रश्न-से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-णेरइयाणं जा वेयणा ण सा णिजरा, जा णिजराण सा वेयणा ? उत्तर-गोयमा ! णेरइयाणं कम्मं वेयणा, णोकम्मं णिजरा; से तेणटेणं गोयमा ! जाव ण सा वेयणा, एवं जाव वेमाणियाणं । कठिन शब्दार्थ-णोकम्म-नोकर्म अर्थात् कर्म का अभाव ।, भावार्थ-८ प्रश्न-हे भगवन् ! जो वेदना है, वह निर्जरा कहलाती है और जो निर्जरा है, वह वेदना कहलाती है ? ८ उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। प्रश्न-हे भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहते हैं कि जो वेदना है वह निर्जरा नहीं कहलाती और जो निर्जरा है वह वेदना नहीं कहलाती? उत्तर-हे गौतम ! कर्म, वेदना है और नोकर्म, निर्जरा है। इस कारण से ऐसा कहता हूं कि यावत् जो निर्जरा है वह वेदना नहीं कहलाती । * ९ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या नरयिक जीवों के जो वेदना है, वह निर्जरा कहलाती है और जो निर्जरा है, वह वेदना कहलाती है ? ९ उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। . ___ प्रश्न हे भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहते हैं कि नरयिक जीवों के जो वेदना है, वह निर्जरा नहीं कहलाती और जो निर्जरा है.वह वेदना नहीं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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