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भगवती सूत्र - श. ७ उ. ३ वेदना और निर्जरा
प्रश्न - हे भगवन् ! इसका क्या कारण है ? उत्तर- शेष सारा कथन नैरथिक की तरह कहना चाहिये यावत् महाकर्म होता हैं ।
विवेचन - कृष्णलेश्या अत्यन्त अशुभ परिणाम रूप है, उसकी अपेक्षा नीललेश्या कुछ शुभ परिणाम रूप है । इसलिये सामान्यतः कृष्णलेश्या वाला जीव महाकर्मी और नील लेश्या वाला जीव अल्पकर्मी होना है, परन्तु आयुष्य की स्थिति की अपेक्षा कृष्णलेशी जीव कदाचित् अल्पकर्मी और नौललेशी जीव, कदाचित् महाकर्मी भी हो सकता है। जैसे कि सातवीं नरक में उत्पन्न कोई कृष्णलेश्या वाला नैरयिक, जिसने अपनी आयुष्य की बहुत स्थिति क्षय करदी हैं, अतएव उसने बहुत कर्म भी क्षय कर दिये हैं, उसकी अपेक्षा कोई नील लेश्या वाला नैरयिक दस सागरोपम की स्थिति से पाँचवी नरक में अभी तत्काल उत्पन्न " हुआ ही है। उसने आयुष्य की स्थिति अधिक क्षय नहीं की । अतएव उसके अभी बहुत कर्म की हैं। इस कारण वह उस कृष्णलेशी नैरयिक की अपेक्षा महाकर्मी हैं ।
यहाँ ज्योतिषी दण्ड का निषेध करने का कारण यह है कि ज्योतिषी देवों में केवल एक तेजोलेश्या ही होती है, दूसरी लेश्या नहीं होती। दूसरी लेश्या के न होने से वह . अल्पकर्मी और महाकर्नी, किस दूसरी लेश्या की अपेक्षा कहा जाय ? इसलिये वह अन्य लेश्या सापेक्ष अल्प-कर्म वाला और महाकर्म वाला नहीं कहा जा सकता
वेदना और निर्जरा
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८ प्रश्न-से णूणं भंते ! जा वेयणा सा णिज्जरा, जा णिज्जरा सा वेयणा ?
८ उत्तर - गोयमा ! णो णट्ठे समट्टे ।
प्रश्न - सेकेट्टेणं भंते ! एवं बुच्चइ - जा वेयणा ण सा णिज्जरा, जा णिजरा ण सा वेयणा ?
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