________________
भगवती सूत्र-श. ७ उ. ३ वर्षादि ऋतुओं में वनस्पति का आहार
११३३
फुडा फलजीवपडिबद्धा तम्हा आहारेंति, तम्हा परिणामेति ।
कठिन शब्दार्थ--फुडा-व्याप्त, पडिबद्धा-प्रतिबद्ध-बंधे हुए ।
भावार्थ-३ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या वनस्पतिकाय के मूल, मूल के जीवों से स्पष्ट (व्याप्त) होते हैं ? कन्द, कन्द के जीवों से स्पृष्ट होते हैं ? यावत् बीज, बीज के जीवों से स्पृष्ट होते हैं ? .
___३ उत्तर-हाँ गौतम ! मल, मूल के जीवों से स्पष्ट होते हैं यावत् बीज बीजों के जीवों से स्पष्ट होते हैं।
४ प्रश्न-हे भगवन् ! यदि मूल, मूल के जीवों से व्याप्त हैं यावत् बीज, बीज के जीवों से व्याप्त हैं, तो वनस्पतिकायिक जीव, किस तरह आहार करते हैं और किस तरह परिणमाते हैं ?
४ उत्तर-हे गौतम ! मल, मूल के जीवों से व्याप्त हैं और वे पृथ्वी के जीवों के साथ संबद्ध हैं, इससे वनस्पतिकायिक जीव, आहार करते हैं और परिणमाते हैं। इस तरह यावत् बीज, बीज के जीवों से व्याप्त हैं और वे फल के जीवों के साथ संबद्ध हैं। इससे वे आहार करते और उसको परिणमाते है।
विवेचन--यहां पर एक ही वृक्षादिरूप वनस्पति के दस विभाग बतलाये गये हैं। यथा-मूल, कन्द, स्कन्ध, त्वचा, शाला (शाखा),प्रवाल, पत्र, पुष्प, फल और बीज ।
यहाँ यह प्रश्न उपस्थित होता है कि मूलादि के जीव मूलादि से व्याप्त हैं और पुष्प, फल, बीजादि के जीव, पुष्प फल बीजादि से व्याप्त हैं । वे भूमि से दूर हैं और आहार तो भूमिगत होता है, फिर वे किस प्रकार आहार ग्रहण करते हैं और परिणमाते हैं ?
इस प्रश्न का उत्तर यह है कि मूल, मूलजीवों से स्पृष्ट है और पृथ्वी जीवों के साथ प्रतिबद्ध हैं । उस प्रतिबद्धता के कारण मूल के जीव, पृथ्वी रस का आहार करते हैं । कन्द, कन्द के जीवों से स्पृष्ट हैं और मूल के जीवों से प्रतिबद्ध है । उस मूल जीव प्रतिबद्धता के कारण कन्द के जीव, मूलजीवों द्वारा गृहीत पृथ्वीरस का आहार करते हैं । इस तरह क्रमशः स्कन्धादि से लेकर बीज पर्यन्त समझ लेना चाहिये। ये सब परस्पर एक दूसरे से प्रतिबद्ध हैं।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org