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भगवती सूत्र - श. ७ उ. ३ वर्षादि ऋतुओं में वनस्पति का आहार
यावत् होते हैं ।
विवेचन - ऋतुएं छह कही गयी हैं। यथा-प्रावृट्, वर्षा, शरद्, हेमन्त, बसन्त और ग्रीष्म । श्रावण और भाद्रपद को 'प्रावृट्,' आश्विन और कार्तिक को 'वर्षा' मृगशिर और पौष को 'शरद्,' माघ और फाल्गुन को 'हेमन्त,' चैत्र और वैशाख को 'बसन्त' तथा ज्येष्ठ और आषाढ़ को 'ग्रीष्म ऋतु कहते हैं । इन छह ऋतुओं में से प्रावृट् और वर्षा ऋतु में वनस्पतिकायिक जोव, सर्वमहाहारी ( सब से अधिक आहार करने वाले) होते हैं। क्योंकि उस समय वर्षा बरसती है । इसलिये जल की अधिकता के कारण वनस्पति को आहार अधिक मिलता है । उसके बाद शरद् हेमन्त और बसन्त में क्रमश: अल्पाहारी होते हैं और ग्रीष्म ऋतु में सर्वाल्पाहारी होते हैं । ग्रीष्म ऋतु में सर्वाल्पाहारी होते हुए भी कई वनस्पतियाँ पत्र पुष्पादि से युक्त होकर एकदम हरी-भरी दिखाई देती है । इसका कारण यह है कि उनमें उस समय उष्णयोनिक जीव अधिक पैदा होते हैं और वृद्धि को प्राप्त होते हैं ।
३ प्रश्न - से णूणं भंते ! मूला मूलजीवफुडा, कंदा कंदजीवफुडा, जाव बीया बीयजीवफुडा ?
३ उत्तर - हंता, गोयमा ! मूला मूलजीवफुडा, जाव बीया बीयजीवफुडा ।
४ प्रश्न - जइ णं भंते ! मूला मूलजीवफुडा, जाव बीया बीयजीवफडा, कम्हा णं भंते ! वणस्सइकाइया आहारेंति, कम्हा परि णामेंति ?
४- उत्तर - गोयमा ! मूला मूलजीवफुडा, पुढवीजीवपडिबद्धा तम्हा आहारेंति, तम्हा परिणामेंति; कंदा कंदजीवफुडा मूलजीवपाडवृद्धा, तम्हा आहारेंति, तम्हा परिणामेंति, एवं जाव बीया बीयजीव
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