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भवगती सूत्र-श. ७ उ. ३ कृष्णादि लेश्या और अल्पाधिक कर्म
. ५ प्रश्न-अह भंते ! आलुए, मूलए, सिंगबेरे, हिरिली, सिरिली सिसिरिली, किट्ठिया, छिरिया छीरविरालिया, कण्हकंदे, वजकंदे, सूरणकंदे, खेलूडे, अदभद्दमुत्था, पिंडहलिदा, लोहिणीहूथीहू, थिरुगा, मुग्गपण्णी, अस्सकण्णी, सीहकण्णी, सीहंढी, मुसुंढी, जेयावण्णे, तहप्पगारा सव्वे ते अणंतजीवा विविहसत्ता ? ..
५ उत्तर-हंता, गोयमा ! आलुए. मूलए जाव अणंतजीवा विविहसत्ता।
कठिन शब्दार्थ--जेयावणे-उसी प्रकार के, तहप्पगारा--तथाप्रकार के।
भावार्थ-५ प्रश्न-हे भगवन् ! आलू, मूला, अदरख, हिरीलो, सिरीली, सिस्सिरीलो किट्टिका, छिरिया, छोरविदारिका, बज्र कन्द, सूरणकन्द, खेलरा, आर्द्रभद्रमोथा, पिंडहरिद्रा, रोहिणी, हुथिहू, थिरुगा, मुद्गपर्णी, अश्वकर्णी, सिंहकर्णी, सिहण्डी, मुसुण्ढी और इसी तरह को दूसरी वनस्पतियां, क्या अनन्त जीव वाली हैं और विविध जीव वाली हैं ?
५ उत्तर-हे गौतम ! आलू, मूला यावत् मुसुण्ढी और इसी प्रकार की दूसरी वनस्पतियां अनन्त जीव वाली हैं और विविध जीव वाली हैं।
विवेचन-आलू, मूला, हिरीली सिरीली आदि ये सब अनन्तकाय के भेद हैं और भिन्न भिन्न देशों में उन उन नामों से प्रसिद्ध हैं। इनमें अनन्त जीव हैं और वे विविध सत्त्व हैं अर्थात् वर्णादि के भेद से अनेक प्रकार के हैं एवं विचित्र कर्म के कारण भी वे अनेक प्रकार के हैं।
कृष्णादि लेश्या और अल्पाधिक कर्म
६ प्रश्न-सिय भंते ! कण्हलेसे गैरइए अप्पकम्मतराए, गील.
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