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भगवती सूत्र - श. ७ उ. २ क्या जीव शाश्वत है ?
के जीव भी सम्मिलित हैं और वे अनन्त हैं। इसलिये अप्रत्याख्यानी जीव अनन्त गुणे हैं । मनुष्यों में अप्रत्याख्यानी असंख्यात गुणे कहे गये हैं, इसका कारण यह है कि इन में सम्मूच्छिम मनुष्यों का ग्रहण किया गया है। गर्भज मनुष्य तो संख्यात ही हैं। :
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मूलगुण प्रत्याख्यानी आदि जीव संयत आदि होते हैं, इसलिये आगे संयतों के संबंध में कहा गया है । संयतादि के सम्बन्ध में जिस तरह प्रज्ञापना सूत्र के बत्तीसवें पद में कहा गया है, उसी तरह यहाँ भी कहना चाहिये तथा उनका अल्पबहुत्व पूर्ववत् कहना चाहिये । औधिक सूत्र में सब से थोड़े संयत जीव हैं, संयतामंयत उनसे असंख्य गुणे हैं और असंयत जीव अनन्त गुणे हैं । पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चों में सब से थोड़े संयतासंयत है; असंयत उनसे असंख्यात गुणे हैं। मनुष्यों में सबसे थोड़े संयत जीव हैं. उनसे संयतासंयत संख्यात गुणे हैं और उनसे असंयत जीव असंख्यात गुणे हैं ।
प्रत्याख्यानादि होने पर ही संयतादि होते हैं । इसलिये आगे प्रत्याख्यानी आदि के सम्बन्ध में कथन किया गया है । यद्यपि छठे शतक के चौथे उद्देशक में प्रत्याख्यानी आदि का कथन हो चुका है, किन्तु वहाँ उनका अल्प बहुत्व नहीं बताया गया है। इसलिये यहाँ अल्प- बहुत्व सहित प्रत्याख्यानी का पुनः कथन किया गया है, तथा यहाँ सम्बन्धान्तर से उनका कथन प्रासंगिक भी है। अतएव उनका यहां कथन किया गया है ।
क्या जीव शाश्वत है ?
२३ प्रश्न - जीवा णं भंते! किं सासया, असासया ?
२३ उत्तर - गोयमा ! जीवा सिय सासया, सिय असासया । प्रश्न - से केणट्टेणं भंते ! एवं बुच्चइ - जीवा सिय सासया, सिय असासया ?
उत्तर- गोयमा ! दव्वट्टयाए सासया, भावट्टयाए असासया, से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं वुबइ - जाव सिय असासया ।
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