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भगवती सूत्र श. ७. उ. २ प्रत्याख्यानी अप्रत्यास्थानी
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तरह मनुष्य भी तीनों प्रकार के हैं। पंचेन्द्रिय-तियंच-योनिक जीव, प्रथम भृंग रहित हैं अर्थात् वे प्रत्याख्यानी नहीं हैं, किन्तु अप्रत्याख्यानी और प्रत्याख्यानाप्रत्याख्वानी हैं। शेष वैमानिक पर्यन्त सभी जीव अप्रत्याख्यानी हैं ।
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२२ प्रश्न - हे गौतम ! प्रत्याख्यानी आदि जीवों में कौन किससे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ?
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२२ उत्तर - हे गौतम! प्रत्याख्यानी जीव सबसे थोडे हैं, प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यानी जीव उनसे असंख्य गुणे हैं और अप्रत्याख्यानी जीव उनसे अनन्त गुणे हैं। पंचेन्द्रियतियंच जीवों में प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यानी जीव सबसे थोड़े हैं और अप्रत्याख्यानी उनसे असंख्यगुणे हैं। मनुष्यों में प्रत्याख्यानी मनुष्य सबसे थोडे हैं । प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यानी उनसे संख्यातगुणे हैं और अप्रत्याख्यानी उनसे असंख्य गुणे हैं ।
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विवेचन-- मूलगुणप्रत्याख्यानी जीव सबसे थोड़ कहे गये हैं अर्थात् सर्वमूलगुणप्रत्या. रूपानी और देश मूलगुण प्रत्याख्यानी जीव सबसे थोड़े हैं, क्योंकि सर्व उत्तरगुणप्रत्याख्यानी और देश उत्तर गुणप्रत्याख्यानी जीव उनसे असंख्य गुणे हैं । इसका कारण यह है कि सर्वविरत (मुनि) जीवों में, जो उत्तर गुणप्रत्याख्यानी हैं, वे अवश्य ही मूलगुणप्रत्याख्यानी हैं, किंतु जो मूलगुणप्रत्याख्यानी हैं, वे कदाचित् उत्तरगुणप्रत्याख्यानी होते भी हैं और नहीं भी होते हैं । जो उत्तरगुणप्रत्याख्यान से रहित हैं, ऐसे मूलगुणप्रत्याख्यानी ही यहाँ पर गृहीत किये हैं । वे दूसरे जीवों से अल्प ही हैं। बहुत से मुनि दस विध प्रत्याख्यान से युक्त होते हैं, फिर भी वे मूलगुणप्रत्याख्यानी जीवों से संख्यात गुणे ही होते हैं, असंख्यात गुणे नहीं होते । क्योंकि सभी मुनि संख्यात ही होते हैं। इस प्रकार मूलगुणप्रत्याख्यानी जीव सबसे थोड़े होते हैं । उत्तरगुणप्रत्याख्यानी जीव उनसे असंख्यात गुणे होते हैं, इसका कारण यह है कि देशविरत जीवों में मूलगुण से रहित भी उत्तरगुण वाले होते हैं, क्योंकि मधु-मांसादि का त्याग एवं विचित्र प्रकार के अभिग्रह के धारक होने से वे उत्तर गुण वाले हैं तथा सामायिक, पौषधोपवास आदि करने वाले होने से वे उत्तरगुण के धारक हैं। इसलिये देशवितोत्तरगुण वालों की अपेक्षा मूलगुण वालों से उत्तरगुण वाले जीव असंख्यात गुणे कहे गये हैं । अप्रत्याख्यानी • जीब उनसे अनन्त गुणे हैं। इसका कारण यह है कि मनुष्य और पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च ही प्रत्याख्यान वाले होते हैं, शेष जीव तो अप्रत्याख्यानी ही होते हैं । उनमें वनस्पतिकाय
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