SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११२६ भगवती सूत्र - श. ७ उ २ प्रत्याख्यानी अप्रत्याख्याना पञ्चक्खाणापच्चक्खाणी ? २१ उत्तर - गोयमा ! जीवा पच्चक्खाणी वि तिणि वि एवं मणुस्सा वितिष्णि वि, पंचिंदियतिरिक्खजोणिया आइल्लविरहिया सेसा सव्वे अपचक्खाणी, जाव वेमाणिया । २२ प्रश्न - एएसि णं भंते! जीवाणं पञ्चक्खाणीणं जाव विसेसाहिया वा ? २२ उत्तर - गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा पञ्चक्खाणी, पञ्चक्खाणापञ्चक्खाणी असंखेज्जगुणा, अपच्चक्खाणी अनंतगुणा । पंचिंदियतिरिक्खजोणिया सव्वत्थोवा पच्चवखाणापच्चवखाणी, अपचन खाणी असंखेजगुणा | मणुस्सा सव्वत्थोवा पच्चक्खाणी, पच्चक्खाणापच्चक्खाणी संखेज्जगुणा, अपच्चक्खाणी असंखेज्जगुणा । कठिन शब्दार्थ - आइल्लविरहिया - आदि ( प्रथम ) के भंग से रहित । भावार्थ - २० प्रश्न - हे भगवन् ! क्या जीव संयत हैं, असंयत हैं, संयतासंयत (देश- संयत ) हैं ? २० उत्तर - हे गौतम ! जीव संघत भी हैं, असंयत भी हैं और संयतासंयत भी हैं। तीनों प्रकार के हैं। इस तरह प्रज्ञापना सूत्र के बत्तीसवें पद में कहे अनुसार यावत् वैमानिक पर्यन्त कहना चाहिये और तीनों अल्पबहुत्व पूर्ववत् कहना चाहिये । २१ प्रश्न - - हे भगवन् ! जीव, प्रत्याख्यानी हैं, अप्रत्याख्यानी हैं या प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यानी (देश प्रत्याख्यानी ) हैं ? २१ उत्तर - हे गौतम! जीव, प्रत्याख्यानी आदि तीनों प्रकार के हैं। इसी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy