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________________ भगवती सूत्र-श. ७ उ. २ प्रत्याख्यानी अप्रत्याख्यानी ११२५ चक्खाणी, जाव वेमाणिया। १९ प्रश्न-एएसि णं भंते ! जीवाणं सव्वउत्तरगुणपञ्चक्खाणीणं? __ १९ उत्तर-अप्पावहुगाणि तिण्णि वि जहा पढमे दंडए, जाव मणुस्साणं । भावार्थ-१८ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या जीव, सर्वोत्तरगुण-प्रत्याख्यानी हैं, देशोत्तरगुण-प्रत्याख्यानी हैं, या अप्रत्याख्यानी हैं ? १८ उत्तर-हे गौतम! जीव, सर्वोत्तरगण-प्रत्याख्यानी आदि तीनों प्रकार के हैं। पंचेन्द्रिय तियंच और मनुष्यों का कथन भी इसी तरह करना चाहिये । शेष वैमानिक पर्यन्त सभी जीव, अप्रत्याख्यानी हैं। १९ प्रश्न-हे भगवन् ! सर्वोत्तरगुण-प्रत्याख्यानी, देशोत्तरगुणप्रत्याख्यानो और अप्रत्याख्यानी जीवों में कौन किससे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ? १९ उत्तर-हे गौतम ! इन तीनों की अल्प-बहुत्व, प्रथम दण्डक में कहे अनुसार यावत् मनुष्यों तक जान लेना चाहिये। २० प्रश्न-जीवा णं भंते ! किं संजया, असंजया, संजयासंजया ? २० उत्तर-गोयमा ! जीवा संजया वि, असंजया वि, संजयासंजया वि तिणि वि, एवं जहेव पण्णवणाए तहेव भाणियव्वं जाव वेमाणिया, अप्पाबहुगं तहेव तिण्ह वि भाणियव्वं । २१ प्रश्न-जीवा पं. भंते ! किं पञ्चक्खाणी, अपञ्चक्खाणी, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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