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भगवती सूत्र
- श. ७ उ. २ मूलोत्तर गुण प्रत्याख्यान:
६ अनाकार, ७ परिमाणकृत, ८ निरवशेष, ९ संकेत, १० अद्धाप्रत्याख्यान । इस प्रकार सर्वोत्तरगुणप्रत्याख्यान दस प्रकार का कहा गया है।
८ प्रश्न - हे भगवन् ! देशउत्तरगुणप्रत्याख्यान कितने प्रकार का कहा गया है ?
८ उत्तर - हे गौतम ! देश उत्तर गुण प्रत्याख्यान सात प्रकार का कहा गया है । यथा -१ दिग्व्रत, २ उपभोगपरिभोगपरिमाण, ३ अनर्थदण्डविरमण, ४ सामायिक, ५ देशावकाशिक, ६ पौषधोपवास, ७ अतिथिसंविभाग, और अपश्चिममारणान्तिक-संलेखना नोषणा - आराधना ।
बिबेचन—सर्वोत्तरगुण प्रत्याख्यान के दस भेद हैं । यथा
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( १ ) अनागत प्रत्याख्यान
होही पज्जोसवणा मम प तथा अंतराइयं होज्जा । गुरुवेयावच्चेणं, तबस्ति गेलण्णयाए वा ॥ १ ॥ सो दाइ तवोकम्मं पडिवज्जह तं अणागए काले । एयं पच्चवखार्ण अणागयं होइ नायव्वं ॥ २ ॥
. अर्थ - किसी आने वाले पर्व पर निश्चित किये हुए प्रत्याख्यान को, उस समय बाधा पड़ती देखकर पहले ही कर लेना - ' अनागत प्रत्याख्यान है'। जैसे कि पर्युषण में आचार्य, तपस्वी और ग्लान ( रोगी) मुनि की सेवा शुश्रूषा करने के कारण होने वाली अन्तराय को देखकर पहले ही उपवास आदि कर लेना ।
(२) अतिक्रान्त
पज्जो सबणाइ तवं जो खलु न करेइ कारणज्जाए । गुरुवेयावच्चेण तवस्सिगेलण्णयाए वा ॥ १ ॥
सो दाइ तवोकम्मं पडिवज्जइ तं अइच्छिए काले ।
एयं पचचक्खाणं अइक्कतं होइ णायध्वं ॥ २ ॥
अर्थ - पर्युषणादि के समय कोई कारण उपस्थित होने पर बाद में तपस्यादि करना अर्थात् गुरु तपस्वी और ग्लान की वैयावृत्य आदि कारणों से जो व्यक्ति पर्युषण आदि पर्वो पर
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