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________________ १११६ भगवती सूत्र - श. ७ उ. २ मूलोत्तर गुण प्रत्याख्यान: ६ अनाकार, ७ परिमाणकृत, ८ निरवशेष, ९ संकेत, १० अद्धाप्रत्याख्यान । इस प्रकार सर्वोत्तरगुणप्रत्याख्यान दस प्रकार का कहा गया है। ८ प्रश्न - हे भगवन् ! देशउत्तरगुणप्रत्याख्यान कितने प्रकार का कहा गया है ? ८ उत्तर - हे गौतम ! देश उत्तर गुण प्रत्याख्यान सात प्रकार का कहा गया है । यथा -१ दिग्व्रत, २ उपभोगपरिभोगपरिमाण, ३ अनर्थदण्डविरमण, ४ सामायिक, ५ देशावकाशिक, ६ पौषधोपवास, ७ अतिथिसंविभाग, और अपश्चिममारणान्तिक-संलेखना नोषणा - आराधना । बिबेचन—सर्वोत्तरगुण प्रत्याख्यान के दस भेद हैं । यथा Jain Education International ( १ ) अनागत प्रत्याख्यान होही पज्जोसवणा मम प तथा अंतराइयं होज्जा । गुरुवेयावच्चेणं, तबस्ति गेलण्णयाए वा ॥ १ ॥ सो दाइ तवोकम्मं पडिवज्जह तं अणागए काले । एयं पच्चवखार्ण अणागयं होइ नायव्वं ॥ २ ॥ . अर्थ - किसी आने वाले पर्व पर निश्चित किये हुए प्रत्याख्यान को, उस समय बाधा पड़ती देखकर पहले ही कर लेना - ' अनागत प्रत्याख्यान है'। जैसे कि पर्युषण में आचार्य, तपस्वी और ग्लान ( रोगी) मुनि की सेवा शुश्रूषा करने के कारण होने वाली अन्तराय को देखकर पहले ही उपवास आदि कर लेना । (२) अतिक्रान्त पज्जो सबणाइ तवं जो खलु न करेइ कारणज्जाए । गुरुवेयावच्चेण तवस्सिगेलण्णयाए वा ॥ १ ॥ सो दाइ तवोकम्मं पडिवज्जइ तं अइच्छिए काले । एयं पचचक्खाणं अइक्कतं होइ णायध्वं ॥ २ ॥ अर्थ - पर्युषणादि के समय कोई कारण उपस्थित होने पर बाद में तपस्यादि करना अर्थात् गुरु तपस्वी और ग्लान की वैयावृत्य आदि कारणों से जो व्यक्ति पर्युषण आदि पर्वो पर For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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