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भगवती सूत्र-श. ७ उ. २ मूलांतर गुण प्रत्याख्यान
१९९५
क्खाणे य देसुत्तरगुणपञ्चकखाणे य ।
७ प्रश्न-सव्वुत्तरगुणपञ्चवखाणे णं भंते ! कइविहे पण्णते ? ७ उत्तर-गोयमा ! दसविहे पण्णत्ते, तं जहा
अणागयमइक्कंत कोडीसहियं णियंटियं चेव । सागारमणागार परिमाणकडं निरवसेसं ॥
साकेयं चेव अद्धाए पच्चस्खाणं भवे दसहा । ८ प्रश्न-देसुत्तरगुणपञ्चक्खाणे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ।
८ उत्तर-गोयमा ! सत्तविहे पण्णत्ते, तं जहा-१ दिसिव्वयं, २ उवभोगपरिभोगपरिमाणं, ३ अण्णत्थदंडवेरमणं, ४ सामाइयं, ५ देसावगासियं, ६ पोसहोववासो, ७ अतिहिसंविभागो; अपच्छिममारणंतियसलेहणाझूसणाऽऽराहणया ।
कठिन शब्दार्थ-अणागयं-अनागत, अइवतं-अतिक्रान्त, कोडीसहियं-कोटिसहित, नियंटियं-नियन्त्रित, सागारमणागार--साकार निराकार, ६ परिमाणकरपरिमाणकृत, साकेयं-संकेत।
.. भावार्थ-६ प्रश्न-हे भगवन् ! उत्तरगुणप्रत्याल्यान कितने प्रकार का कहा गया है ?
६ उत्तर-हे गौतम ! उत्तरगुणप्रत्वाख्यान दो प्रकार का कहा गया है।। यथा-सर्वोत्तरगुणप्रत्याख्यान और देशोत्तरगुणप्रत्याख्यान ।
. ७ प्रश्न-हे भगवन् ! सर्वोत्तरगुणप्रत्याख्यान कितने प्रकार का कहा गया है?
___७ उत्तर-हे गौतम ! सर्वोत्तरगुणप्रत्याख्यान दस प्रकार का कहा गया है । यया-१ अनागत, २ अतिक्रान्त, ३ कोटिसहित, ४ नियन्त्रित, ५ साकार,
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