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भगवती सूत्र - श. ७ उ. २ मूलोत्तर गुण प्रत्याख्यान
भावार्थ - २ प्रश्न - हे भगवन् ! प्रत्याख्यान कितने प्रकार का कहा गया है ? २ उत्तर - हे गौतम ! प्रत्याख्यान दो प्रकार का कहा गया है । यथामूलगुणप्रत्याख्यान और उत्तरगुणप्रत्याख्यान ।
३ प्रश्न - हे भगवन् ! मूलगुणप्रत्याख्यान कितने प्रकार का कहा गया है ? ३ उत्तर - हे गौतम! मूलगुणप्रत्याख्यान दो प्रकार कहा गया है । यथा - सर्व मूलगुणप्रत्याख्यान और देश-मूल- गुणप्रत्याख्यान ।
४ प्रश्न - हे भगवन् ! सर्व-मूल-गुण- प्रत्याख्यान कितने प्रकार का कहा गया है ?
४ उत्तर - हे गौतम ! सर्व मूलगुणप्रत्याख्यान पांच प्रकार का कहा गया है । यथा - सर्व प्राणातिपात से विरमण, सर्व- मृषावाद से विरमण, सर्व अदत्तादान से विरमण, सर्व-मैथुन से विरमण और सर्व परिग्रह से विरमण |
५ प्रश्न - हे भगवन् ! देश मूलगुणप्रत्याख्यान कितने प्रकार का कहा गया है ?
५ उत्तर- हे गौतम ! देश मूलगुणप्रत्याख्यान पाँच प्रकार का कहा गया । यथा-स्थूल - प्राणातिपात से विरमण यावत् स्थूल- परिग्रह से विरमण ।
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विवेचन – चारित्ररूप कल्पवृक्ष के मूल के समान प्राणातिपात विरमण आदि गुण 'मूलगुण' कहलाते हैं। मूलगुण विषयक प्रत्याख्यान (त्याग) को 'मूल गुणप्रत्याख्यान ' कहते हैं । वृक्ष की शाखा के समान मूलगुणों की अपेक्षा जो उत्तररूप गुण हों, वे 'उत्तरगुण' कहलाते हैं । और तद्विषयक प्रत्याख्यान ' उत्तरंगुणप्रत्याख्यान' कहलाते हैं ।
सर्वथा मुलगुणप्रत्याख्यान - 'सर्वमूल गुणप्रत्याख्यान' नहलाता है और देशतः (अंशतः ) मूलगुण प्रत्याख्यान, 'देशमूलगुणप्रत्याख्यान' कहलाता है। सर्वविरत मुनियों के सर्वमूलगुणप्रत्याख्यान होता है और देशविरत श्रावकों के देश मूलगुणप्रत्याख्यान होता है ।.
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६ प्रश्न - उत्तरगुणपच्चक्खाणे णं भंते ! कहविहे पण्णत्ते ? ६ उत्तर - गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - सवुत्तरगुणपच्च
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