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भगवती मूत्र-श. ७ उ. २ मूलांतर गुण प्रत्यास्थान
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सुप्रत्याख्यान का कारण जीवाजीवादिका बोध है और बोध का अभाव दुष्प्रत्याख्यान में निमित्त है।
मूलोत्तर गुण प्रत्यार यान । २ प्रश्न-कइविहे णं भंते ! पञ्चक्खाणे पण्णत्ते ?
२ उत्तर-गोरमा ! दुविहे. पञ्चक्खाणे पण्णत्ते, तं जहा-मूलगुणपञ्चरखाणे य उत्तरगुणपञ्चक्खाणे य। - ३ प्रश्न-मूलगुणपञ्चक्खाणे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ?
३ उत्तर-गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-सव्वमूलगुणपच्चक्खाणे य देसमूलगुणपञ्चक्खाणे य।
४ प्रश्न-सव्वमूलगुणपञ्चवखाणे णं भंते ! कइविहे पण्णते ?
४ उत्तर-गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-सव्वाओ पाणाइ. वायाओ वेरमणं, जार सवाओ परिग्गहाओ वेरमणं । __-५ प्रश्न-देसमूलगुणपञ्चक्खाणे णं भंते ! कइविहे पण्णते ? - ५ उत्तर-गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-थूलाओ पाणाइ. वायाओ वेरमणं, जाव थूलाओ परिग्गहाओ वेरमणं।
व्याख्या पीछे करना-यह 'यथासंख्य' (यथाक्रम) न्याय कहलाता है।
.. जो शन्द प्रश्न के अन्त में आया है उसकी पहले व्याख्या करना और जो शब्द प्रश्न के प्रारम्भ में आया है उसको व्याख्या पीछे करना, यह 'यथाऽऽसन्न' (समीपस्थ)न्याय कहलाता है। यहाँ प्रश्न के अन्त में आये हुए 'दुष्प्रत्याख्यान' शब्द की व्याख्या पहले की गई और सुप्रत्याख्यान शब्द की व्याख्या पीलेकी गई है।
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