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भगवती सूत्र-श. ८ उ. १० जीव पुद्गल है या पुद्गली ?
पोग्गले वि'।
४६ प्रश्न-णेरइए णं भंते ! किं पोग्गली० ?
४६ उत्तर-एवं चेव, एवं जाव वेमाणिए, णवरं जस्स जइ इंदियाइं तस्स तइ वि भाणियब्वाई।
४७ प्रश्न-सिदधे णं भंते ! किं पोग्गली, पोग्गले ?
४७ उत्तर-गोयमा ! णो पोग्गली, पोग्गले । (प्र.) से केणटेणं . भंते ! एवं वुच्चइ-'जाव पोग्गले' ? (उ.) गोयमा ! जीवं पडुच्च, से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-'सिधे णो पोग्गली, पोग्गले ।'
® सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति के ॥ अट्ठमसए दसमो उद्देसो समत्तों ॥
॥अट्ठमं सयं समत्तं ॥ कठिन शब्दार्थ-पोग्गली-पुद्गली (इन्द्रियों वाला) पोग्गले--पुद्गल (जीव) पडेणं पडी--पट-वस्त्र युक्त होने पर पटी (सवस्त्री) पडुच्च--अपेक्षा (आश्रय) से, करेणं करी--हाथ से हाथ वाला।
भावार्थ-४५ प्रश्न-हे भगवन् ! जीव पुद्गली है, अथवा पुद्गल ? ४५ उत्तर-हे गौतम ! जीव पुद्गली भी है और पुद्गल भी।
प्रश्न-हे भगवन् ! ऐसा क्यों कहते हैं कि 'जीव पुद्गली भी है और पुद्गल भी है?
उत्तर-हे गौतम ! जिस पुरुष के पास छत्र हो उसे छत्री, दण्ड हो उसे दण्डी, घट हो उसे घटी, पट हो उसे पटी और कर हो उसे करी कहते है, उसी प्रकार जीव भी श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय जिव्हेन्द्रिय, और
पत्ता समत्ता॥
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