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. भगवती सूत्र-श. ८ उ. १. जीव पुद्गल है या पुद्गली ?
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१७ वेदनीय में गोत्र-कर्म की नियमा है और गोत्र-कर्म में वेदनीय की नियमा है। १८ वेदनीय में अन्तराय की भजना है और अंतराय में वेदनीय की नियमा है । १९ मोहनीय में आयुष्य की नियमा है और आयुष्य में मोहनीय की भजना है। २० मोहनीय में नामकर्म की नियमा है और नामकर्म में मोहनीय की भजना है। २१ मोहनीय में गोत्र-कर्म की नियमा है और गोत्र-कर्म में मोहनीय को भजना है। २२ मोहनीय में अन्तराय की नियमा है और अन्तराय में मोहनीय की भजना है। २३ आयुष्य में नाम-कर्म की नियमा है और नामकर्म में आयुष्य को नियमा है । २४ आयुष्य में गोत्र-कर्म की नियमा है और गोत्र-कर्म में आयुष्य की नियमा है। २५ आयुष्य में अन्तराय की भजना है और अन्तराय में आयुष्य की नियमा है । २६ नामकर्म में गोत्र-कर्म को नियमा है और गोत्रकर्म में नामकर्म की नियमा है। २७ नामकर्म में अन्तराय की भजना है और अन्तराय में नाम-कर्म की नियमा है। २८ गोत्र-कर्म में अन्तराय की भजना है और अन्तराय में गोत्र-कर्म की नियमा है। इस नियमा और भजना की घटना सुगम है।
जीव पुद्गल है या पुद्गली ?
४५ प्रश्न-जीवे णं भंते ! किं पोग्गली, पोग्गले ?
४५ उत्तर-गोयमा ! जीवे पोग्गली वि, पोग्गले वि । (प्र.) से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-'जीवे पोग्गली वि, पोग्गले वि' ? (उ.) गोयमा ! से जहाणामए-छत्तेणं छत्ती, दंडेणं दंडी, घडेणं घडी, पडेणं पडी, करेणं करी, एवामेव गोयमा ! जीवे वि सोइंदियचक्खिदिय-पाणिदिय-जिभिदिय-फासिंदियाई पडुच्च पोग्गली, जीवं पडुच्च पोग्गले; से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-'जीवे पोग्गली वि,
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