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________________ भगवती सूत्र-श. ८ उ. १० जीव पुद्गल है या पुद्गली ? १५६७ स्पर्शनेन्द्रिय की अपेक्षा 'पुद्गली' कहलाता है और जीव को अपेक्षा 'पुद्गल' कहलाता है । इसलिये हे गौतम ! में ऐसा कहता हूं कि 'जीव पुद्गली भी है और पुद्गल भी है।' ४६ प्रश्न-हे भगवन् ! नैरयिक जीव पुद्गली है अथवा पुद्गल ? ४६ उत्तर-हे गौतम! उपरोक्त सूत्र की तरह यहां भी कहना चाहिये। अर्थात् नैरयिक जीव पुद्गली भी है और पुद्गल भी है । इसी प्रकार वैमानिक पर्यत कहना चाहिये, परन्तु जिन जीवों के जितनी इन्द्रियां हों, उनके उतनी इन्द्रियां कहनी चाहिये। ४७ प्रश्न- हे भगवन् ! सिद्ध जीव पुद्गली है या पुद्गल ? ४७ उत्तर-हे गौतम ! सिद्ध जीव, पुद्गली नहीं, किन्तु पुद्गल हैं ? (प्र.) हे भगवन् ! ऐसा क्यों कहा कि--'सिद्ध नीव पुद्गलों नहीं, पुद्गल है' ? (उ.) हे गौतम ! जीव की अपेक्षा सिद्ध जीव पुद्गल है, इसलिए ऐसा कहता हूँ कि सिद्ध जीव पुद्गली नहीं पुद्गल हैं। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। इस प्रकार कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं। . - विवेचन-श्रोत्र, चक्षु, आदि पुद्गल जिसके हों, उसे 'पुद्गली' कहते हैं । घट, पट, दण्ड, छत्र आदि के योग से पुरुष को--घटी, पटी, दण्डी, छत्री कहते हैं । इसी प्रकार पुद्गल (इन्द्रियों) के योग से जीव को 'पुद्गली' कहते हैं। ‘जीव को जो 'पुद्गल' कहा है, वह जीव की संज्ञा' है। अर्थात् जीव के लिये गुद्गल शब्द संज्ञावाची है। ॥ इति आठवें शतक का दसवां उद्देशक समाप्त ॥ आठवाँ शतक सम्पूर्ण । तृतीय भाग समाप्त ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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