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भगवती सूत्र-श. ८ उ. १० आराधको के शेष भव
ग्रहण करके सिद्ध होता है, यावत् समस्त दुःखों का अन्त करता हैं ? .
१० उत्तर-हे गौतम ! जिस प्रकार उत्कृष्ट ज्ञान आराधना के विषय में कहा, उसी प्रकार उत्कृष्ट चारित्र आराधना के विषय में भी कहना चाहिये । कितने ही जीव कल्पातीत देवलोकों में उत्पन्न होते हैं।
११ प्रश्न-हे भगवन् ! ज्ञान को मध्यम आराधना करके जीव कितने भव ग्रहण करके सिद्ध होता है, यावत् सर्व दुःखों का अन्त करता है ?
११ उत्तर-हे गौतम ! कितने ही जीव, दो भव ग्रहण करके सिद्ध होते । हैं यावत् सभी दुःखों का अन्त करते हैं, वे तीसरे भव का अतिक्रमण नहीं करते।
१२ प्रश्न-हे भगवन् ! दर्शन की मध्यम आराधना करके जीव कितने भव ग्रहण करके सिद्ध होता है, यावत् सर्व दुःखों का अन्त करता है ?
१२ उत्तर-हे गौतम ! जिस प्रकार मध्यम ज्ञान आराधना के विषय में कहा हैं, उसी प्रकार मध्यम दर्शन आराधना और मध्यम चारित्र आराधना के विषय में भी कहना चाहिये ।
१३ प्रश्न-हे भगवन् ! ज्ञान को जघन्य आराधना करके जीव, कितने भब ग्रहण करके सिद्ध होता हैं, यावत सभी दुःखों का अन्त करता हैं ?
१३ उत्तर-हे गौतम ! कितने ही जीव, तीसरे भव में सिद्ध होते हैं, यावत् सर्व दुःखों का अन्त करते हैं, परन्तु सात-आठ भव का अतिक्रमण नहीं करते । इसी प्रकार जघन्य दर्शन आराधना और जघन्य चारित्र आराधना के विषय में भी कहना चाहिये ।
___ विवेचन-अतिचार न लगाते हुए आचार का शुद्ध पालन करना-'आराधना' है । इसके तीन भेद हैं । यथा-१ ज्ञान आराधना २ दर्शन आराधना ओर ३ चारित्र आराधना। ज्ञान के काल, विनय, बहुमान आदि आठ आचारों का निर्दोष रीति से पालन करना-ज्ञान आराधना है । शंका, कांक्षा आदि समकित के अतिचारों को न लगाते हुए निःशंकित आदि समकित के आचारों का शुद्धतापूर्वक पालन करना-'दर्शन आराधना' है । सामायिक आदि चारित्र में अतिचार न लगाते हुए निर्मलतापूर्वक पालन करना-'चारित्र आराधना' है।
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