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________________ भगवती सूत्र-श. ८ उ. १० श्रुत और शील आराधक १५३९ पूछा-हे भगवन् ! अन्यतीथिक इस प्रकार कहते हैं यावत प्ररूपणा करते हैं१ शील ही श्रेष्ठ है, २ श्रुत ही श्रेष्ठ है ३ (शील निरपेक्ष) श्रुत ही श्रेष्ठ है अथवा (श्रुतनिरपेक्ष)शील ही श्रेष्ठ है । तो हे भगवन् ! यह किस प्रकार है ? १ उत्तर-हे गौतम ! अन्यतीथिकों ने जो इस प्रकार कहा है, वह मिथ्या कहा है । हे गौतम ! मैं इस प्रकार कहता हूं यावत् प्ररूपणा करता हूं। मैने चार प्रकार के पुरुष कहे हैं, यथा १ कोई शील सम्पन्न है, परन्तु श्रुत सम्पन्न नहीं है । २ कोई पुरुष श्रुत सम्पत्र है, परंतु शोल सम्पन्न नहीं है। ____३ कोई पुरुष शील सम्पन्न भी है और श्रुत सम्पन्न भी है। ४ कोई पुरुष शील सम्पन्न भी नहीं और श्रुत सम्पन्न भी नहीं। (१) इनमें से जो प्रथम प्रकार का पुरुष है, वह शीलवान है, परन्तु श्रुतवान् नहीं। वह उपरत (पापादि से निवृत्त) है, परन्तु धर्म को नहीं जानता। हे गौतम ! इस पुरुष को मैंने 'देश-आराधक' कहा है। (२! जो दूसरे प्रकार का पुरुष है, वह शीलवान् नहीं परन्तु श्रुतवान् है । वह पुरुष अनुपरत (पापादि से अनिवृत्त) है, परन्तु धर्म को जानता है । हे गौतम ! उस पुरुष को मैने देश-विराधक' कहा है। (३) जो तीसरा पुरुष है, वह शीलवान् भी है और श्रुतवान् भी है। वह पुरुष उपरत है और धर्म को जानता है। हे गौतम ! उस पुरुष को मैने 'सर्वाराधक' कहा है। ... (४) जो चौथा पुरुष है, वह शील और श्रुत दोनों से रहित है । वह अनुपरत है और धर्म का भी ज्ञाता नहीं है । हे गौतम ! उस पुरुष को मैंने 'सर्वविराधक' कहा है। विवेचन-सर्वज्ञ के वचनों में एकता एवं अविरुद्धता होती है, किंतु छद्मस्थों के वचनों में ऐसी बात नहीं होती। कोई किसी प्रकार की प्ररूपणा करता है, तो कोई अन्य प्रकार की । अन्यतीथिकों की यही दशा है । कुछ अन्यतीर्थी इस प्रकार मानते हैं कि शील (प्राणातिपातादि से विरमणरूप क्रिया) ही श्रेष्ठ है, ज्ञान का कुछ भी प्रयोजन नहीं, क्योंकि ज्ञान Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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