SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 475
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५३८ भगवती सूत्र - श. ८ उ. १० श्रुत और शील के आराधक १ उत्तर - गोयमा ! जं णं ते अण्णउत्थिया एवं आइक्खति, जाव जे ते एवं आहंसु, मिच्छा ते एवं आहंसु, अहं पुण गोयमा ! एवं आइक्खामि, जाव परूवेमि - एवं खलु मए चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - १ सीलसंपणे णामं एगे णो सुयसंपण्णे, २ सुयसंपणे णामं एगे णो सीलसंपणे, ३ एगे सीलसंपण्णे वि सुयसंपण्णे वि, ४ एगे.णो सीलसंपण्णे णो सुयसंपण्णे । तत्थ णं जे से पढमे पुरिसजाए से गं पुरिसे सीलवं असुयवं; उवरए, अविण्णायधम्मे एस णं गोयमा ! म पुरसे देसाराह पण्णत्ते । तत्थ णं जे से दोच्चे पुरिसजाए से गं पुरिसे असीलवं सुयवं, अणुवरए, विष्णायधम्मे, एस णं गोयमा ! मए पुरिसे देसविराहए पण्णत्ते । तत्थ णं जे से तच्चे पुरिसजाए से गं पुरिसे सीलवं सुयवं; उवरए विष्णायधम्मे, एस णं गोयमा ! मए पुरिसे सव्वाराहए पण्णत्ते । तत्थ णं जे से चउत्थे पुरिसजाए से णं पुरिसे असीलवं असुयवं, अणुवरए, अविण्णायधम्मे एस णं गोयमा ! मए पुरिसे सव्वविराहए पण्णत्ते । कठिन शब्दार्थ - - आइक्लंति-- कहते हैं, सीलं सेयं - गील ही श्रेय (अच्छा ) है । सुयं श्रुत, कहमेयं - किस प्रकार, आहंसु - कहते हैं, पुरिसजाए- पुरुषों के प्रकार, सीलवंशीलवान्, असुयवं - अश्रुतवान्, उवरए - उपरत (निवृत्त) अविष्णायधम्मे – धर्म नहीं जानता, बेसाराहए - देश आराधक, अणुवरए - अनुपरत ( अनिवृत्त), विष्णा यधम्मे-- धर्म का ज्ञाता, वेसविराहए - देश विराधक, सम्वाराहए - सर्व आराधक । भावार्थ -- प्रश्न - १ राजगृह नगर में यावत् गौतम स्वामी ने इस प्रकार Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy