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________________ १५.६ भगवती सूत्र-श. ८ उ. ५ तेजस् शरीर प्रयोग बंध उदएणं ? ६९ उत्तर-गोयमा ! वीरिय-सजोग-सहव्वयाए जाव आउयं च पडुच्च तेयासरीरप्पओगणामाए कम्मस्स उदएणं तेयासरीरप्पओगबंधे। कठिन शब्दार्थ-ओगाहणसंठाणे-अवगाहना संस्थान (प्रज्ञापनासूत्र का इक्कीसवाँ पद)। भावार्थ-६७ प्रश्न-हे भगवन् ! तेजस्-शरीर प्रयोग-बध कितने प्रकार का कहा गया है ? ६७ उत्तर-हे गौतम ! पांच प्रकार का कहा गया है । यथा-एकेंद्रिय तेजस्-शरीर प्रयोग-बंध, बेइन्द्रिय तेजस्-शरीर प्रयोग-बंध यावत् पंचेंद्रिय तंजस्शरीर प्रयोगबंध । . ६८ प्रश्न-हे भगवन् ! एकेन्द्रिय तेजस्-शरीर प्रयोग-बंध कितने प्रकार का कहा गया है. ? . ६८ उत्तर-हे गौतम ! इस अभिलाप द्वारा जिस प्रकार प्रज्ञापनासूत्र के इक्कीसवें अवगाहना-संस्थान पद में भेद कहे हैं, उसी प्रकार यहां भी कहना चाहिये, यावत् पर्याप्त सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरोपपातिक कल्पातीत वैमानिक देव पंचेन्द्रिय तेजस-शरीर प्रयोग-बंध और अपर्याप्त सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरोपपातिक कल्पातीत वैमानिक देव पंचेन्द्रिय तेजस् प्रयोग-बंध । ६९ प्रश्न-हे भगवन् ! तेजस्-शरीर प्रयोग बंध किस कर्म के उदय से होता है ? ६९ उत्तर-हे गौतम ! सवीर्यता, सयोगता और सद्व्यता यावत् आयुष्य-इन आठ कारणों से एवं तेजस्-शरीर प्रयोग नामकर्म के उदय से तेजसशरीर प्रयोग-बन्ध होता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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