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भगवती मूत्र-ग. ८ उ. ५ आहारक गरीर प्रयोग बंध
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अल्पवहुत्व-आहारक-शरीर के सर्व-बंधक सबमे थोड़े होते हैं। क्योंकि उनका समय अल्प है । उनसे दंश-बंधक संख्यात गुण होते हैं, क्योंकि देश-बंध का काल वहुत है । वे संख्यात गुण ही होते हैं, असंख्यात गुण नहीं, क्योंकि मनुष्य ही संख्याता है, अतएव आहारक-शरीर के देश-बंधक असंख्यात गुण नहीं हो सकते । अवन्धक उनसे अनन्त गुण होते हैं, क्योंकि आहारक-शरीर मनुष्यों के ही होता है और उनमें भी किन्ही संयत जीवों के ही होता है और उनके भी कदाचित् ही होता है, सर्वदा नहीं । शेष काल में वे स्वयं और सिद्ध जीव तथा वनस्पतिकायिक आदि गंप सभी जांव, आहारक-शरीर के अबन्धक होते हैं, और वे उनसे अनन्त गुण हैं ।
तैजस्-शरीर प्रयोग-बंध
। ६७ प्रश्न-तेयासरीरप्पओगबंधे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ?
६७ उत्तर-गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तं. जहा-एगिदियतेयासरीरप्पओगवंधे, बेईदियतेयासरीरप्पओगबंधे, जाव पंचिंदियतेयासरीरप्पओगबंधे।
६८ प्रश्न-एगिदियतेयासरीरप्पओगबंधे णं भंते ! कइविहे पण्णते?
६८ उत्तर-एवं एएणं अभिलावेणं भेओ जहा ओगाहणसठाणे, जाप पजतासबट्टसिद्ध-अणुतरोववाइय-कप्पाईयवेमाणिय देवपंचिंदियतेयासरीरप्पभोगधंधे य, अपजत्तासम्वसिद्ध-अणुत्तरोववाइय० जाव बंधे य।
६९ प्रश्न-तेयासरीरप्पओगबंधे णं भंते ! कस्स कम्मस्स
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