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भगवती सूत्र--श. ८ उ. ५ आहारक शरीर प्रयोग बंध
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६४ उत्तर-हे गौतम ! आहारक-शरीर प्रयोग-बन्ध का सर्वबंध एक समय तक होता है और देशबन्ध जघन्य अन्तर्मुहुर्त और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहर्त तक होता है।
६५ प्रश्न-हे भगनन् ! आहारक-शरीर प्रयोग बन्ध का अन्तर कितने काल का है ?
६५ उत्तर-हे गौतम ! सर्व-बन्ध का अन्तर जघन्य अन्तर्महतं और उत्कृष्ट अनन्तकाल-अनन्त उत्सपिणी अबसर्पिणी होता है । क्षेत्र की अपेक्षा अनन्त लोक-देशोन अर्द्ध पुद्गल परावर्तन होता है। इसी प्रकार देशबन्ध का अन्तर भी जानना चाहिये।
६६ प्रश्न-हे भगवन ! आहारक-शरीर के देशबंधक, सर्वबंधक और अबंधक जीवों में कौन किससे कम, अधिक, तुल्य और विशेषाधिक है ? .
६६ उत्तर हे गौतम ! सबसे थोडे जीव आहारक-शरीर के सर्व-बंधक है, उनसे देशबंधक संख्यात गुण हैं और उनपे अबंधक जीव अनन्त गुण हैं।
विवेचन-आहारक-शरीर केवल मनुष्यों के ही होता है । मनुष्यों में भी ऋद्धि प्राप्त-प्रमत्त-संयत-सम्यग्दृष्टि संख्यानवर्ष की आयु वाले कर्मभूमि में उत्पन्न गर्भज-मनुष्य को ही होता है । इसका सर्वबन्ध एक समय का ही होता है। देशबन्ध जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूते मात्र ही होता है । इसके बाद वह नियम से औदारिक-शरीर को ग्रहण करता है । उस अन्तर्मुहर्त में प्रथम समय में सर्वबन्ध होता है और उसके बाद देश बन्ध होता है।
आहारक-गरीर को प्राप्त हुभा जीव, प्रथम समय में सर्व-बन्धक होता है। उसके बाव अन्तर्मुहूर्त तक आहारक-शरीरी रहकर पुनः औदारिक गरीर को प्राप्त होता है, वहाँ अम्त महन रहने के बाद पुनः संशय मावि की निवृत्ति के लिये उसे आहारका दारीर बनाने का कारण उत्पन्न होने पर, पुनः भाहारक-शरीर बनाता है और उसके प्रथम समय में वह सर्व-बन्धक ही होता है। इस प्रकार सर्व-बंध का अम्मर अन्तर्मुहर्त होता है । इन दोनों अन्तर्मुहतों को एक अन्तर्मुहूत की विवक्षा करके एक अन्तर्मुहूर्त कहा गया है और उत्कृष्ट अन्तर, काल की अपेक्षा अनन्त काल-अनन्त उत्सर्पिणी अवसर्पिणी और क्षेत्र की अपेक्षा अनन्तलोक-देशोन अपार्ध पुद्गलपरावर्तन होता है । इसी प्रकार देश-बंध का भी अन्तर जानना चाहिये।
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