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________________ ११०६. . ... भगवती सूत्र-श. ७ उ. १ उत्पादन के दोष उद्गम के सोलह दोषों का निमित्त गृहस्थ दाता होता है। अर्थात् गृहस्थ के निमित्त से ये दोष साधुओं को लगते हैं। • उत्पादना के सोलह दोष धाई दूई निमित्ते, आनीव वाणिमगे तिगिच्छा य।" कोहे माणे माया लोहे, य, हवंति दस एए ॥१॥ पुग्विपच्छासंथव, विज्जा मंते य चुण्ण जोगे य। ... उप्पायणाइ दोसा, सोलसमे मूलकम्मे यः॥२॥ (१) धात्री-बच्चे को खिलाना, पिलाना आदि धाय का काम करके या किसी के घर में धाय की नौकरी लगवाकर आहार लेना। (२) दूती-एक दूसरे का सन्देश गुप्त या प्रकट रूप से पहुंचा - कर, दूत का काम करके आहारादि लेना। . (३) निमित्त-भूत और भविष्यत् को जानने के शुभाशुभ निमित्त बतलाकर आहा. रादि लेना। . (४) आजीव - स्पष्ट या अस्पष्ट रूप से अपनी जाति और कुल आदि प्रकट करके। .. . (५) वनीपक-श्रमण, शाक्य, सन्यासी आदि में जो जिसका भक्त हो, उसके सामने उसी की प्रशंसाकर के या दीनता दिखाकर आहारादि लेना। (६) चिकित्सा-औषधि करना या बताना आदि चिकित्सक का काम करके आहारादि ग्रहण करना। ...... (७) क्रोध-क्रोध करके या गृहस्थ को शापादि का भय दिखाकर भिक्षा लेना। . (८) मान-अभिमान से अपने को प्रतापी, तेजस्वी, बहुश्रुत आदि. बताते हुए अपना प्रभाव जमाकर आहारादि लेना। (९) माया–वंचना अर्थात् ठगाई करके आहारादि लेना। (१०) लोभ-आहार में लोभ करना अर्थात् भिक्षा के लिये जाते समय जीभ के लालच से यह निश्चय करके निकलना कि आज तो अमुक वस्तु ही खायेंगे और उसके अनायास न मिलने पर इधर-उधर ढूंढना तथा दूध आदि मिल जाने पर स्वादवश शक्कर आदि के लिये इधर-उधर भटकना 'लोमपिण्ड' है। (११) प्रापश्चात्संस्तव (पुविपच्छा संथव)-आहार लेने के पहले या पीछे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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