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भगवती सूत्र श. उ. ९ शरीरबंध
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देसबंधंतरं जहणेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं तिष्णि समया । जहा पुढविक्काइयाणं एवं जाव चउरिंदियाणं वाउचकाइयवज्जाणं, णवरं सव्वबंधंतरं उक्को सेणं जा जस्स ठिई सा समयाहिया कायव्वा । वाउक्काइयाणं सव्वबंधंतरं जहणणेणं खड्डागभवग्गहणं तिसमयऊणं, उक्कोसेणं तिष्णि वाससहस्साइं समयाहियाई । देसबंधंतरं जहणेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं ।
३७ प्रश्न - पंचिंदियतिरिक्खजोणियओरालियपुच्छा |
३७ उत्तर - सव्वबंधंतरं जहण्णेणं खुड्डागभवग्गहणं तिसमयऊणं, उक्को सेणं पुव्वकोडी समयाहिया । देसवंधतरं जहा एगिंदियाणं: तहा पंचिंदिय-तिरिक्खजोणियाणं, एवं मणुस्माण वि णिरवसेसं भाणियव्वं जाव उक्कोसेणं अतोमुहुत्तं ।
कठिन शब्दार्थ- बंधंतरं - बंध का अन्तर ।
भावार्थ - ३४ प्रश्न - हे भगवन् ! औदारिक शरीर के बंध का अन्तर कितने काल का होता है ?
३४ उत्तर - हे गौतम! सर्व-बंध का अन्तर जघन्य तीन समय कम क्षुल्ककभव ग्रहण पर्यंत है और उत्कृष्ट समयाधिक पूर्व कोटि और तेतीस सागर है। देश-बंध का अन्तर जघन्य एक समय और उत्कृष्ट तीन समय अधिक तेतीस सागरोपम है ।
३५ प्रश्न - हे भगवन् ! एकेंद्रिय औदारिक-शरीर-बंध का अन्तर कितने काल का है
?
३५ उत्तर - हे गौतम ! इनके सर्व-बंध का अन्तर जघन्य तीन समय
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