SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 427
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४९० भगवती सूत्र श. उ. ९ शरीरबंध " देसबंधंतरं जहणेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं तिष्णि समया । जहा पुढविक्काइयाणं एवं जाव चउरिंदियाणं वाउचकाइयवज्जाणं, णवरं सव्वबंधंतरं उक्को सेणं जा जस्स ठिई सा समयाहिया कायव्वा । वाउक्काइयाणं सव्वबंधंतरं जहणणेणं खड्डागभवग्गहणं तिसमयऊणं, उक्कोसेणं तिष्णि वाससहस्साइं समयाहियाई । देसबंधंतरं जहणेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं । ३७ प्रश्न - पंचिंदियतिरिक्खजोणियओरालियपुच्छा | ३७ उत्तर - सव्वबंधंतरं जहण्णेणं खुड्डागभवग्गहणं तिसमयऊणं, उक्को सेणं पुव्वकोडी समयाहिया । देसवंधतरं जहा एगिंदियाणं: तहा पंचिंदिय-तिरिक्खजोणियाणं, एवं मणुस्माण वि णिरवसेसं भाणियव्वं जाव उक्कोसेणं अतोमुहुत्तं । कठिन शब्दार्थ- बंधंतरं - बंध का अन्तर । भावार्थ - ३४ प्रश्न - हे भगवन् ! औदारिक शरीर के बंध का अन्तर कितने काल का होता है ? ३४ उत्तर - हे गौतम! सर्व-बंध का अन्तर जघन्य तीन समय कम क्षुल्ककभव ग्रहण पर्यंत है और उत्कृष्ट समयाधिक पूर्व कोटि और तेतीस सागर है। देश-बंध का अन्तर जघन्य एक समय और उत्कृष्ट तीन समय अधिक तेतीस सागरोपम है । ३५ प्रश्न - हे भगवन् ! एकेंद्रिय औदारिक-शरीर-बंध का अन्तर कितने काल का है ? ३५ उत्तर - हे गौतम ! इनके सर्व-बंध का अन्तर जघन्य तीन समय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy