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भगवती सूत्र - श. ८ उ. ९ प्रयोग बंध
हाथ प्रमाण वेदिका सहित जम्पान - पालखी), गिल्लि ( हाथी की अम्बाडी), थिल्लि ( पलाण), शिविका ( पालखी), स्यन्दमानी ( वाहन विशेष ), लोढी, लोह का कड़ाह, कुड़छी ( चम्मच), आसन, शयन, स्तम्भ, मिट्टी के बर्तन, पात्र और नाना प्रकार के उपकरण इत्यादि पदार्थों के साथ जो सम्बन्ध होता हैं, उसे देश संहनन बंध कहते है । यह जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट संख्येय काल तक रहता है। इस प्रकार यह देश संहनन बंध कहा गया है ।
१० प्रश्न - से किं तं सव्वसाहणणाबंधे ?
१८ उत्तर - सव्वसाहणणाबंधे से णं खीरोदगमाईणं । सेत्तं सव्वसाहणणाबंधे, सेतं साहणणाबंधे, सेत्तं अल्लियावणबंधे ।
भावार्थ - १८ प्रश्न - हे भगवन् ! सर्व संहनन बंध किसे कहते हैं ? १८ उत्तर - हे गौतम ! दूध और पानी की तरह मिल जाना सर्व संहनन बंध कहलाता है । इस प्रकार सर्व संहनन बंध कहा गया है। यह आलीन बंध का कथन पूर्ण हुआ है ।
विवेचन - जीव के व्यापार द्वारा जो बंध होता है, वह 'प्रयोग बंध' कहलाता है । १ अनादि-अपर्यवसित, २ अनादि सपर्यवसित, ३ सादि- अपर्यवसित और सादि - सपर्यवसित । इन चार भंगों में से दूसरे भंग में प्रयोग बंध नहीं होता, शेष तीन भंगों से होता है । जीव के असंख्यात प्रदेशों में से मध्य के जो आठ प्रदेश हैं, उनका बंध अनादि - अपर्यवसित है । क्योंकि जब जीव केवली-समुद्घात करता है, तब उसके प्रदेश सम्पूर्ण लोक में व्याप्त हो जाते हैं । उस समय भी वे आठ प्रदेश तो अपनी स्थिति में ही रहते हैं, उनमें किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं होता। इसलिये उनका बंध अनादि अपर्यवसित है । उनकी स्थापना इस प्रकार है-नीचे गोस्तनाकार चार प्रदेश हैं और उनके ऊपर चार प्रदेश हैं। इस प्रकार समुदाय रूप से आठ प्रदेशों का बंध । उन आठ प्रदेशों में भी प्रत्येक प्रदेश का अपने पास रहे हुए दो प्रदेशों के साथ और ऊपर या नीचे रहे हुए एक प्रदेश के साथ, इस प्रकार तीन तीन प्रदेशों के साथ अनादि- अपर्यवसित बंध है । शेष सभी प्रदेशों का
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