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भगवती सूत्र - श. ८ उ. ९ प्रयोग बंध
प्रयोग बन्ध
१० प्रश्न - से किं तं पओगबंधे ।
१० उत्तर - पओगबंधे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा - अणाईए वा अपज्जवसिए, साईए वा अपज्जवसिए, साईए वा सपज्जवसिए । तत्य णं जे से अणाईए अपज्जवसिए से णं अट्ठण्हं जीवमज्झपरसाणं, तत्थ वि णं तिन्हं तिन्हं अणाईए अपज्जवसिए, सेसाणं साईए । तत्थ णं जे से साईए अपज्जवसिए से णं सिद्धाणं । तत्थ णं जे से साईए सपज्जवसिए से णं चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहाआलावणबंधे, अल्लियावणबंधे, सरीरबंधे, सरीरप्पओगबंधे ।
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कठिन शब्दार्थ - जीवमज्झपए साणं- जीव के आत्म- प्रदेशों में मध्य के प्रदेश, सेसा - बाकी के आलावणबंधे -आलापन बन्ध ( रस्सी आदि से घास आदि को बाँधना ), अल्लिया. वणबंधे - लाख आदि से दो वस्तु को चिपकाना, सरीरप्प ओगबंधे - शरीर के प्रयोग से बंध होना ।
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भावार्थ - १० प्रश्न हे भगवन् ! प्रयोग-बन्ध किसे कहते हैं ?
१० उत्तर - हे गौतम! प्रयोग बंध तीन प्रकार का कहा गया है । यथा१ अनादि - अपर्यवसित २ सादि - अपर्यवसित और ३ सादि सपर्यवसित । इनमें से जो अनादि - अपर्यवसित बंध है, वह जीव के मध्य के आठ प्रदेशों का होता है। उन आठ प्रदेशों में भी तीन तीन प्रदेशों का जो बंध है, वह अनादि- अपर्यवसित बंध है, शेष सभी प्रदेशों का सादि बंध है । सिद्ध जीवों के प्रदेशों का सादिअपर्यवसित बंध है। सादि सपर्यवसित बंध चार प्रकार का कहा गया है । यथाआलापन बन्ध, आलीन बन्ध, शरीर बन्ध और शरीर प्रयोग बन्ध ।
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